पर्यावरण का रक्षण

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जैसा कि आपको पता है इस धरती का 29% हिस्सा भूमि के रूप में हमे मिला है बाकी 71% हिस्सा जल है। इस 29% मे से भी 1/3 हिस्सा रेतीले रेगिस्तान के रूप मे उपस्थित है। बाकी बची हुई भूमि पर ही हम रहते है और जीने लिए काफी सारे साधन भी इसी भूमि से मिलते हैं जैसे की पेड़ पौधे, फसल, फल, फूल आदि।  आज के तकनीकी युग मे हम लगातार पेड़ पौधो को नष्ट करते जा रहे हैं। जिससे न सिर्फ हम अपने लिए साथ ही इन पर निर्भर जीव जैसे पशु पक्षी कीट आदि को भी मृत्यु की ओर धकेल रहे है।

मनुष्यों की जनसंख्या तो बढ़ती जा रही है पर उतनी ही तेज़ी से पेड़ पौधों की संख्या नहीं बढ़ रही है। इसके विपरीत हम दिन प्रतिदिन पेड़ पौधे, फसल को नष्ट करते जा रहे हैं। रहने के लिए बड़ी-बड़ी इमारते, काम काज के लिए ऊंची बिल्डिंग ,ऑफिस, ख़रीदारी के लिए अनेकों मॉल बनाते जा रहे हैं। और तो और लगातार बात करने लिए मोबाइल टावर बढ़ते जा रहे हैं। इस सबका सीधा असर पर रहा है पेड़ पौधे, फसल पर निर्भर जीवो पर , साथ ही हम पर भी। क्या करे ये बेचारे पेड़ पौधे मात्र हमे ऑक्सीजन, फल, फूल, देते है, मोबाइल पे बात करने के लिए सिग्नल नहीं देते। काश वे मोबाइल टावर कि तरह सिग्नल दे पाते तो हम भर भर के इन्हे लगाते, न सिर्फ लगाते, बल्कि उनकी सुरक्षा का भी कड़ा ध्यान रखते।

विशेषज्ञों के मुताबिक एक पूरा विकसित पेड़ (12 मीटर लंबा) 1 वर्ष मे लगभग 100kg ऑक्सीजन देता है और एक मनुष्य को स्वस्थ जीवन जीने के लिए 1 वर्ष मे 740kg ऑक्सीजन चाहिए होता है। अब आप स्वयं हिसाब लगा लीजिये कि एक मनुष्य को कितने पेड़ पौधे की आवश्यकता है। और हम कितने पेड़ लगते है तो रहने दीजिये, कितने काट रहे है, उसका हिसाब लगाइए। अब शायद आपको पता पड़ेगा कि क्यों लगातार गर्मी और प्रदूषण बढ़ता चला जा रहा है।

आंकड़ों के जाने तो पाएंगे की सन 1980 से तापमान हर दशक मे 0.15-0.20C बढ़ता जा रहा है, जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते है। हर साल कई बड़े देशो मे धरती पे बढ़ रहे तापमान को ले कर बड़ी कॉन्फ्रेंस होती है पर नतीजा अभी भी संतोष जनक नहीं मिल पाया है। कई देशो ने बड़े ही कड़े और सख्त कदम उठा कर पर्यावरण को संरक्षित किया है।  पर हम? हम क्या कर रहे है? 1.3 बिलियन की आबादी वाले हमारे देश मे से छोटे मोटे पेड़, पौधे लगाने से, फसल को सुरक्षित करने ने क्या काम चल जाएगा?

आप खुद ही सोचे और मनन करें। गत 10 वर्षो पर अगर नज़र डाले तो पाएंगे की कितनी ही प्राकृतिक आपदाएँ आ चुकी है देश के विभिन्न हिस्सो में 2008 मे तमिलनाडु मे तूफान निशा, बिहार मे बाड़, 2009 मे आंध्रा मे बाढ़, 2010 मे लेह लद्दाक मे बादल फटा, 2011 मे सिक्किम मे भूकंप, तमिल नाडु मे तूफान, 2012 मे उत्तराखंड मे बाड़, असम मे बाड़, तमिल नाडु मे तूफान, 2013 मे तमिल नाडु, ओडिशा, आंध्रा मे तूफान और बाढ़, उत्तराखंड , हिमाचल मे बाढ़ और लैंड स्लाइड, 2014 मे बाढ़ और तूफान आदि। इन सबसे ये स्पष्ट है की पर्यावरण एक सीमित सीमा तक ही हमारा उत्पात सह सकता है।

आप सोचेंगे की भारत जैसे बड़े देश मे ये सब कर पाना संभव नहीं, तो ज़रा नज़र डालिए उन देशो पर जो भारत से आकार मे बड़े है फिर भी पर्यावरण को सुरक्षित रख रहे है साथ ही प्रदूषण पर भी पूरा संतुलन बनाए हुए है जैसे कि अमेरिका, कनाडा, जापान आदि, इसके अलावा अन्य कई देश है जैसे ऑस्ट्रेलिया, ब्रुने, आइसलैंड, फ़िनलंड, स्वेदन, आदि। इतना ही नहीं हमारे सबसे नजदीकी पड़ोसी भूटान भी इसी श्रेणी मे आते है।

एक रिपोर्ट जो की IIASA (international institute for applied systems analysis, austria) और  CEEW (council on energy, environment and water, new delhi), ने मिलके जारी की है, उसके मुताबिक करीं 674 मिल्यन भारतीय भारी प्रदूषित हवा मे सांस लेंगे साल 2030 मे भी और 833 मिल्यन लोग NAAQ (national ambient air quality standards) मापदंडो वाले साफ हवा मे रेह पाएंगे। और ये सब भी तब होगा जब हम प्रदूषण पे रोक के नियमो को पालन करेंगे।

तो क्या अब भी आप हाथ पर हाथ धर के, बैठना चाहते हैं? या सोश्ल मीडिया मे लिख कर, फोटो दाल कर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करना चाहते हैं? या धरने पर बैठ कर मांग पूरी करवाने का ढोंग करना चाहते हैं? या फिर सच मे बिना किसी शोर के, बिना किसी मीडिया मे छाए अपनी ज़िमीदारी निभाना चाहते हैं? ये आपको तय करना है की कौन सा रास्ता अप लेना चाहते हैं और किस मंज़िल तक पहुँचना है आपको?

केवल, पेड़ पौधे लगाने से ही आपकी ज़िमेदारी पूरी नहीं हो जाती। जी हाँ, सही सुना आपने, चाहे अप एक पेड़ लगाए पर उसके पूरे विकास की ज़िमेदारी ले। कई लोग, संस्थाए कई सारे पेड़ पौधे लगते है पर उन मे से कुछ ही चल पाते है, बाकी सब मर जाते है। तो आइए आप और हम ये प्रण ले कि जीतने पेड़ पौधे लगेए उनकी, सुरक्षा और संपूरण विकास कि ज़िमेदारी भी ले। ये पेड़ पौधे आने वाले समय मे हमारी आगे कि पीढ़ियो को इसका लाभ देंगे। स्वच्छ हवा मे सांस लेना हम सब का अधिकार है, तो पर्यावरण का रक्षण भी हम सबकी ज़िमेदारी है। इसके लिए हम देश, सरकार को दोष दे कर अपना पीछा नहीं छुड़ा सकते। प्रदूषण पे रोक लगाने वाले नियमो का सख्ती से पालन करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

केवल “ये नहीं है, ये गलत है, ये कहा है, ये ईएसए क्यों है,और मैं ही क्यों करू आदि” सवालो के मायाजाल से बाहर आइए और अपने आस पास के पर्यावरण का रक्षण करिए। हो सकता है आपको शुरू मे लोग अजीब कहे, या आप पर हँसे, और ये भी हो सकता है कि आप कि वजह से 2 लोग प्रभावित हो आप जैसा बनना चाहे। तो अब आप तय करिए कि आप किसी के मज़ाक के डर से पर्यावरण को हानी पहुंचने मे हाथ बंटाना चाहते है या लोगों को प्रभावित कर पर्यावरण का रक्षण कर फिर से सुंदर और प्यारी धरा को हारा भरा बनाना चाहते हैं।

अंत में यही कहना चहुंगी की कि पर्यावरण का रक्षण ज़रूरी अथवा पर्यावरण तबाही करने में सक्षम है। यदि हम इसी तरह पर्यावरण को बर्बाद करते रहे तो, वो दिन दूर नहीं जब हमारा अस्तित्व ही धरती से मिट जाएगा। आपका पर्यावरण का रक्षण, आपका फैसला है। सोचे, समझे और पर्यावरण  के रक्षण मे मदद करें।

अंकिता बाहेती

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