नई तकनीकी के बीच बदलता रोजगार का रिश्ता

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डिजिटलाइजेशन, आर्टिफिशयल इंटेलीजेन्स और रोबोट के कारण रोजगार नष्ट हो रहे हैं। हर रोज तकनीक में बदलाव हो रहा है और जो लोग बदलती तकनीक के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे, उन्हें बेरोजगारी का संकट झेलना पड़ रहा है।
प्रौद्योगिकी आज जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है। नई मशीनें, नया कौशल और नए कार्यबल का प्रोफ़ाइल नौकरी बाजार में एक अलग असर छोड़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार अगले पांच साल में लाखों  की संख्या में रोजगार
खत्म हो जाएंगे क्योंकि उन कामों की जिम्मेदारी रोबोट ले लेंगे। डिजिटलाइजेशन के कारण 25 प्रतिशत कम्पनियां भी अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस कर रही हैं। अब बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में भी इसी तरह की आशंकाएं बढ़ रही हैं। इसके अलावा रसायन और फार्मेसी उद्योग भी प्रभावित होंगे।

अगले कुछ सालों में मौजूदा पेशों में से आधे खत्म हो जाएंगे। अनुमान है कि 2025 तक मशीनों द्वारा किया गया काम 29 फीसद से बढ़कर 50 फीसद हो जाएगा।  हालांकि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विशेषज्ञ एकहार्ड अन्‌र्स्ट इससे सहमत नहीं हैं।  कृषि क्षेत्र की बात करें तो पहले कृषि परम्परागत यंत्रों से की जाती थी, अब अच्छे उत्पादन के लिए कृषि में व्यापक स्तर पर मशीनीकरण हुआ। खेती के जिन क्षेत्रों में मशीनीकरण हुआ है, उन क्षेत्रों में पशुपालन का स्वरूप भी बदला है। वजह यह है कि अब पशु शक्ति के स्थान पर मशीनों से काम लिया जाने लगा है जिससे पशुओं की संख्या कम होती जा रही है। कृषि में परम्परागत खादों का भी प्रयोग कम होने लगा है। यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं है कि दुनिया भर में काफी संख्या में लोग उत्साह के बजाय सावधानी के साथ तकनीकी परिवर्तन को अपनाते हैं। उन्हें यह भी डर सताता रहता है कि नई तकनीकों से उनकी नौकरी या उनके बच्चों की नौकरी जा सकती है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में अंग्रेजी कपड़ा श्रमिकों ने नई बुनाई मशीनों को नष्ट कर दिया था। मशीनों को वे अपनी नौकरी लेने का दोषी मानते थे। ऐसे लोगों को ‘लुडाइट्स’ कहा जाता था। यह नाम उनके नेता नेड लुड के नाम पर पड़ा था। उन्हें डर था कि मशीनों के कारण उनका परिवार गरीबी के दलदल में चला जाएगा। इसमें कोई संदेह भी नहीं है कि पिछली दो शताब्दियों में तकनीकी परिवर्तन की लहरों ने नौकरियों को खत्म कर दिया है। कुछ व्यवसाय खत्म हो गए हैं। लेकिन  नई मांग और जीवन स्तर के बढ़ते मानकों के परिणामस्वरूप या तो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से नई नौकरियां भी उत्पन्न हुईं है। तो क्या इसे सिर्फ पुराना डर कहा जाए।

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हमेशा नौकरियों की प्रकृति बदली
तकनीकि में बदलाव से श्रमिकों में भी बदलाव आता रहा है। बदलती प्रौद्योगिकी और उपभोक्ता मांग ने हमेशा ही नौकरियों की प्रकृति को बदला है। ऑस्ट्रेलिया में 1976 में 40 प्रतिशत कार्यबल कृषि या उद्योग में कार्यरत था, आज यह संख्या एक चौथाई से भी कम है। इंडोनेशिया की कहानी भी कुछ इसी तरह की ही है। 1976 में इंडोनेशिया में दो तिहाई कार्यबल कृषि में कार्यरत था और यह हिस्सा आज लगभग एक तिहाई गिर गया है जिसकी जगह बढ़ते औद्योगिक और सेवा रोजगार ने ले ली है। कुछ लोग सोचते हैं कि तकनीकी परिवर्तन की गति तेज हो गई है या उसमें तेजी लाने वाली है जो विशेष रूप से विघटनकारी साबित होगी। लेकिन रॉबर्ट गॉर्डन जैसे प्रमुख विश्लेषक भी हैं, जो तर्क देते हैं कि तकनीकी परिवर्तन की दर धीमी हो गई है। पर इसके साथ ही अमरीका, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया  में हाल ही में रोजगार में वृद्धि दिखी है। फिर भी एक अन्य दावा यह है कि तकनीकी परिवर्तन से अब अधिक प्रभावशाली समूह प्रभावित हो सकते हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि भले ही प्रबंधन और रोजगार के अवसर बने रहें, तकनीकी परिवर्तन से आय के वितरण पर असर पड़ सकता है। ऑस्ट्रेलिया सहित कई विकसित देशों में नौकरियों का ध्रुवीकरण हुआ है। उच्च और निम्न स्तर की नौकरियों दोनों में मजबूत वृद्धि भी हुई है। अमरीका की  2008-09 की मंदी के दौरान रोजगार के मौके घट गए थे। लेकिन व्यवसाय चलते रहे थे। अमरीकी श्रम बाजार में मजदूरी कम हो मिलने लगी थी।

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हालिया युग असाधारण
देखने वाली बात यह भी है कि आय में वृद्धि के मामले में हालिया युग कितना असाधारण रहा है। पिछले 2300 वर्षों की तुलना में जीवन स्तर लगभग 75 प्रतिशत बढ़ा है। पिछले दो सौ सालों में  औद्योगिक क्रांति के दौरान विकास में तेजी आई। मनुष्य की उम्र भी बढ़ी। दुनिया भर में आय अधिक समान हुई है जबकि  ’परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं’ की औसत वास्तविक आय केवल सुस्त रूप से बढ़ी है। व्यापक चिन्ता के बावजूद कि मशीनें और उभरती प्रौद्योगिकियां मानव
श्रमिकों को विस्थापित कर देंगी, भारत में कम्पनियां नौकरी के नुकसान का नहीं, रोजगार सृजन का अनुमान लगा रही हैं। जैसे-जैसे कुछ नौकरियां गायब होती जा रही हैं तो नए प्रकार के रोजगार भी उभर रहे हैं। एक सर्वेक्षण में शामिल की गई 21% कंपनियों ने पिछले पांच वर्षों में नए डिजिटल उपकरण और सेवाओं की शुरूआत के कारण अपनी नई कार्य भूमिकाएं बनाई हैं। कहने की जरूरत नहीं कि अगली पीढ़ी के लिए नई तकनीकी कौशल को सीखना और उनका उपयोग करना जरूरी होगा, जबकि वर्तमान पीढ़ी को अपने काम को सफलतापूर्वक करने के लिए अपनी विशेषज्ञता को बनाए रखना होगा। हमारी वर्तमान की जरूरत यह है कि सभी पेशेवरों के लिए “डिजिटल साक्षरता” का एक बुनियादी स्तर हो। पेशेवरों को अपने रोजमर्रा के काम के साथ-साथ जमीनी स्तर पर  भी बुनियादी तकनीकों का उपयोग करने में सहज और आश्वस्त होना चाहिए।

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