सरकार ने इन 5 अलगाववादी नेताओं से ली सुरक्षा वापस, हर साल होते थे 100 करोड़ खर्च

राज्य सरकार की रिपोर्ट बताती है कि अलगाववादियों पर सालाना 100 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है। इसमें उनकी सुरक्षा पर केंद्र सरकार की रकम भी शामिल है। बता दें कि कश्मीर के अलगाववादियों पर हो रहे खर्च का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है।

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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने कश्मीरी अलगाववादियों को मिलने वाली सुरक्षा को वापस लेने का फैसला लिया है। इन अलगाववादी नेताओं में मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल ग़नी बट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी, शब्बीर शाह शामिल हैं।

सरकारी आदेश के मुताबिक, किसी भी अलगाववादी को सुरक्षा बल कोई सुरक्षा नहीं देंगे। सरकार की तरफ से सुविधा दी गई अन्य सुविधाएं भी तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएंगी। जिसमें वाहन आदि सभी शामिल होंगे। आपको उन अलगाववादी नेता के बारें में बताएंगे लेकिन उससे पहले आपको ये बता दें, कि राज्य सरकार की रिपोर्ट बताती है कि अलगाववादियों पर सालाना 100 करोड़ रुपए खर्च हो रहा है। इसमें उनकी सुरक्षा पर केंद्र सरकार की रकम भी शामिल है। बता दें कि कश्मीर के अलगाववादियों पर हो रहे खर्च का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है। 90 फीसदी हिस्सा केंद्र तो जम्मू-कश्मीर सरकार सिर्फ 10 फीसदी खर्चा ही उठाती है।

मीरवाइज उमर फारूक
मीरवाइज अलगाववादी नेता होने के साथ-साथ आवामी एक्शन कमिटी के चेयरमैन भी हैं। ये कमिटी ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ का ख़ास हिस्सा है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस, कश्मीर की ‘आजादी’ की मांग करने वाला सबसे बड़ा संगठन है। अक्टूबर 2014 में जॉर्डन के ‘रॉयल इस्लामिक स्ट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर’ ने मीरवाइज को 500 सबसे प्रभावशाली मुसलमानों की लिस्ट में शामिल किया था। ये रिपोर्ट अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी ने प्रिंस अलग वालीज बिन तलाल सेंटर के सहयोग से पब्लिश की थी।

अब्दुल गनी बट
फरवरी 1986 में जम्मू और कश्मीर में फारसी के एक प्रोफेसर को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था, क्योंकि सरकार ने उसे और आठ अन्य लोगों को आगजनी का दोषी पाया था। दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों के मंदिरों और घरों को जलाने के आरोप में वे दोषी पाए गए थे।

नौ महीने जेल में बिताने के बाद उसने मुस्लिम संयुक्त मोर्चा (MUF) नामक एक “राजनीतिक संगठन”  शुरू किया था। इस अलगाववादी नेता ने साल 2000 में कहा था कि, वो वह व्यक्तिगत रूप से कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनना पसंद करेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब्दुल गनी बट के अपने ही भाई को हिज्बुल मुजाहिदीन से जुड़े आतंकियो ने मार दिया था।

बिलाल लोन
बिलाल लोन अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक मॉड्रेट धड़े के प्रमुख सदस्य हैं। 2014 में लोन ने बीजेपी के साथ अपने संबंध मजबूत करने शुरू कर दिए थे। 2014 चुनाव में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन के साथ उनकी पार्टी भी शामिल हुई थे। बिलाल, सज्जाद लोन के बड़े भाई हैं। अमानुल्लाह खान परिवार के साथ 1987 तक इंग्लैंड में रहता था, लेकिन आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की बात का खुलासा होने पर उसे वहां से डिपोर्ट कर दिया गया था। ये जिक्र किताब ‘कश्मीर: द वाजपेयी इयर्स’ में है।

हाशिम कुरैशी
अलगाववादी नेता हाशिम कुरैशी जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। अब जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक लिबरेशन पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। उन मुख्य अलगाववादी कश्मीरी राजनीतिक संगठनों में से एक है, जो शांतिपूर्ण और राजनीतिक गतिविधियों के माध्यम से कश्मीर मुद्दे का राजनीतिक समाधान खोजने का प्रयास करते हैं।

शब्बीर शाह
अलगाववादी नेता शब्बीर शाह जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। जम्मू और कश्मीर के “आत्मनिर्णय के अधिकार” की मांग करने वाले मुख्य अलगाववादी राजनीतिक संगठनों में से एक है।  शब्बीर 31 साल जेल में बिता चुके हैं। वे ‘जेल बर्ड’, कश्मीर का नेल्सन मंडेला और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ‘विवेक के कैदी’ के रूप में जाने जाते हैं।

आपको बता दें, इन पांचों अलगाववादी नेताओं ने भारत सरकार द्वारा वापस ली जाने वाली सुरक्षा पर जवाब देते हुए मीडिया से कहा कि, उन्होंने कभी भी उनसे सुरक्षा नहीं मांगी थी। बल्कि सरकार ने ही उनसे कहा था कि उनकी सुरक्षा में खतरा है।

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