राजस्थान: इन दिनों सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर #10YearChallenge नाम से एक चैलेंज चल रहा है जिसमें लोग 10 साल पुरानी और आज की फोटो को जोड़कर शेयर कर रहे हैं। इन तस्वीरों के जरिए लोग बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनमें कितना बदलाव आया लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि इस चैलेंज को फेसबुक ने शुरू किया ताकि लोगों का डेटा एक नई तकनीक के माध्यम से चुराया जाए और लोगों को मालूम भी न चलें।
एक जर्नलिस्ट की पड़ताल में मालूम चला है कि ये चोरी किया डाटा फेसबुक फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिदम को बेहतर बनाने में कर सकती है। टेक जर्नलिस्ट केट ओ’नाइल ने wired.com पर एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें उन्होंने इस चैलेंज के जरिए लोगों की प्राइवेसी के साथ समझौता होने की आशंका जताई है।
क्या लिखा केट ओ’नाइल के आर्टिकल में
ये आर्टिकल 15 जनवरी को लिखा गया लेकिन उससे पहले 13 जनवरी के आस-पास नाइल ने कुछ ट्वीट किए थे। जिसमें उन्होंने कहा,‘‘10 साल पहले फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चल रहे इस एजिंग मीम के साथ मैं शायद खेलती, लेकिन अब मैं सोच रही हूं कि फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिदम को इंप्रूव करने के लिए एज प्रोग्रेसन और एज रिकग्निशन के डेटा का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है?” इस ट्वीट के बाद लोगों ने पूछा, ये डेटा तो फेसबुक के पास था ही। वो खुद ही लोगों की प्रोफाइल फोटो खंगाल सकते थे। फिर ये चैलेंज देने की जहमत क्यों करते? इस से जुड़ा हुआ आर्टिकल नाइल ने लिखा।
जरूरी नहीं लोगों ने उसी साल की, उसी समय की फोटो डाली हो। मतलब उन पुरानी तस्वीरों की कोई क्रोनोलॉजी हो, क्रम हो, ये पक्का नहीं। मगर इस चैलेंज से फेसबुक को साफ पता लग जाएगा। कि ये फलां आदमी की 10 साल पहले की फोटो है और ये आदमी/औरत अब ऐसा दिखता/दिखती है। मतलब साफ-साफ तब और अब की फोटो हासिल हो गई उसे। केट के मुताबिक, इसके अलावा कुछ यूजर्स अपनी फोटो की लोकेशन भी बता रहे हैं, जिससे एक चैलेंज के जरिए ही एक बड़ा डेटा तैयार हो गया है कि लोग 10 साल पहले और अब कैसे दिखते हैं।’’ उन्होंने बताया कि इस डेटा का इस्तेमाल फेशियल रिकग्निशन एल्गोरिदम को ट्रेन्ड करने में किया जाता है।
ये एक चैलेंज, कोई ट्रेंड नहीं
नाइल के आर्टिकल कहा गया है कि दुनिया में AI (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) पर काम हो रहा है। उदाहरण के तौर पर गूगल को लीजिए। जो चुटिकियों में आपकी परेशानी को तुरंत हल कर देता, या फिर आप ऑनलाइन चीजों कों लीजिए जिनकों आप एक बार देखते हैं लेकिन कुछ देर बाद उनके विज्ञापन आपके स्मार्टफोन स्क्रीन या लैपटॉप पर नजर आते हैं। यानी कहने का मतलब है ये है कि कंपनियां आपका डाटा चुरा रही हैं और आपकी पसंद के अनुसार, आपको चीजें दिखा रही है।
ज़रूरी नहीं कि इस 10 ईयर चैलेंज का कोई नुकसान हो या इसके पीछे कोई बुरी मंशा छुपी हो। मगर तकनीक के मामले में हमें सावधानी बरतनी चाहिए। हम क्या डेटा बना रहे हैं, इसका क्या असर हो सकता है, इसका क्या इस्तेमाल हो सकता है, इन सबके बारे में सोचना चाहिए हमें। क्योंकि हम नहीं जानते कि कौन सी तकनीक कैसे इस्तेमाल हो रही है। कि ये किसी एक ट्रेंड का सवाल नहीं है। याद रखिए डिजिटल की दुनिया के बीच का लिंक हैं सिर्फ इंसान। याद हो अमेरिकी चुनावों में मिली ट्रंप की जीत आज भी चर्चा का विषय है।
फेसबुक ने दी सफाई
फेसबुक ने इन दावों को खारिज किया है। उसने इसे यूजर जनरेटेड मीम बताया है। फेसबुक का कहना है कि, हमने यह चलन शुरू नहीं किया। मीम में इस्तेमाल किए गए फोटो फेसबुक पर पहले से ही मौजूद हैं। फेसबुक को इस मीम से कुछ नहीं मिल रहा। फेसबुक यूजर्स फेशियल रिकग्निशन को कभी भी ऑन या ऑफ कर सकते हैं।
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