मोदी जी के कई वादे और दावे प्रगति पर है….

श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कारोबारी साल में मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट, हेल्थ और एजुकेशन समेत 8 सेक्टरों में सिर्फ 2.30 लाख नौकरियां पैदा हुईं जबकि देश में हर साल 1.80 करोड़ लोग वर्कफोर्स में जुड़ जाते हैं।

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अब जबकि लोकसभा चुनाव में कुछ ही माह रह गए हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार के मंत्री, भाजपा संगठन के कार्यकर्ता आए दिन यह कहने से नहीं थक रहे हैं कि उन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों में फिर बड़ा बहुमत मिलेगा। उन्हें पूरा भरोसा है कि हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा जीत के सभी रिकॉर्ड तोड़ देंगे। लोग हमारे साथ हैं और हमारे पास डरने के लिए कुछ भी नहीं है। यह बात अलग है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त नरेंद्र मोदी ने आर्थिक मोर्चे पर कई वादे और दावे किए थे। कई वादों का तो अता-पता ही नहीं है। विदेशों से कालाधन वापस लाने और विकास दर बढ़ाकर 10 फीसदी कर देने जैसे वादे अभी तक मुंह चिढ़ा रहे हैं। इसे देखते हुए सवाल उठना लाजिमी है कि आम लोगों के लिहाज से मोदी सरकार का शासन कैसा माना जाए।

यह भी आरोप है कि उनका प्रशासन भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है और मुस्लिम अल्पसंख्यकों को निशाने पर लिया जा रहा है। ओपिनियन पोल भी यह बता रहे हैं कि भाजपा सरकार अगले पांच साल की अवधि के लिए फिर जीतेगी। लेकिन पिछले कुछ महीनों में कुछ स्थानीय चुनावों में उलटा असर दिखा है। कुछ घटनाओं ने विपक्ष को भी सक्रिय किया है। भाजपा मई में कर्नाटक में सत्ता तक पहुंचने में नाकाम रही। दक्षिण में कर्नाटक विधान सभा के चुनावों को लोकप्रियता का परीक्षण माना गया था। उत्तर में उत्तर प्रदेश के कुछ उप चुनावों में भाजपा हार भी गई। इस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मतदाता एक बड़ी अर्थव्यवस्था और वैश्विक विकास चाहते हैं। एक मजबूत और निर्णायक केंद्र सरकार चाहते हैं। हमने पिछले चार वर्षों में बहुत मेहनत की है। हम लोगों के पास विकास के ट्रैक वाला रिकॉर्ड लेकर जाएंगे। उधर,  कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष क्षेत्रीय दलों और यहां तक ​​कि कम्युनिस्टों को साथ लेने की जोड़तोड़ में है।

अब तक के ये अनुभव रहे

मोदी सरकार के कार्यकाल को लेकर कुछ इस तरह का आंकलन किया जा सकता है। भाजपा हर साल एक करोड़ नौकरियों के लुभावने वायदे के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के ही अनुसार देश में हर रोज 550 नौकरियां खत्म हो रही हैं। स्वरोजगार के मौके भी खत्म हो रहे हैं। श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कारोबारी साल में मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट, हेल्थ और एजुकेशन समेत 8 सेक्टरों में सिर्फ 2.30 लाख नौकरियां पैदा हुईं जबकि देश में हर साल 1.80 करोड़ लोग वर्कफोर्स में जुड़ जाते हैं। यूपीए सरकार के दौरान विपक्ष ने  पेट्रोल-डीजल के दामों पर कांग्रेस की सबसे ज्यादा आलोचना की थी लेकिन आग  वो थे पेट्रोल-डीजल के दाम. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 2013-14 में जितना उछाल था उसके हिसाब से बाजार की हालत आज देश में पेट्रोल-डीजल के दाम अब तक के शिखर पर हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली में 14 सितम्बर 2013 को एक लीटर पेट्रोल 76.06 रुपए प्रति लीटर मिल रहा था। 25 अक्टूबर 2018 को 80.44 प्रति लीटर है।  यानी ये अपने अब तक के सबसे महंगे स्तर पर है। ओडिशा में तो डीजल पेट्रोल से महंगा हो गया है। इसलिए कहा जा सकता है कि मोदी सरकार पेट्रोल के दाम कम करने में पूरी तरह विफल रही है। 

2014 के चुनाव से पहले भाजपा ने महिला अपराध पर भी यूपीए सरकार को घेरा था लेकिन मोदी सरकार भी पिछले तीन साल में इस मामले में कुछ खास नहीं कर सकी है। वर्ष 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3 लाख 38 हजार से अधिक केस दर्ज किए गए, जो  2015 के मुकाबले काफी अधिक हैं। बलात्कार, बलात्कार की कोशिश, अपहरण, छेड़छाड़, आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बच्चियों के साथ रेप के दोषी को फांसी का कानून सरकार ने बनाया है जिसका असर आने वाले वक्त में ही देखा जा सकेगा। सबको बिजली, भारत निर्माण भी ठोस छाप छोड़ने में विफल रहे हैं। नोटबंदी से भी सरकार वांछित परिणाम हासिल नहीं कर सकी। न काला धन खत्म हुआ और न नकली नोटों में कमी आई। बैंकों का एनपीए भी बढ़ा है। कैग ने यह सवाल ठीक ही उठाया है कि बैंक जब जरूरत से ज्यादा बड़े कर्ज दे रहे थे, तब रिजर्व बैंक क्या कर रहा था। देश की जीडीपी को तगड़ा झटका लगा ही है। केन्द्र सरकार तमाम तरह के किन्तु-परन्तु के बावजूद सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करने के लिए प्रतिबद्धता जताते थक नहीं रही है। क्षेत्रीय दल  यहां तक ​​कि कम्युनिस्ट भी कांग्रेस के नेतृत्व में मोदी के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने के लिए गठबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं। इन्हें कितनी सफलता मिलेगी, यह भविष्य के गर्भ में है  2014 के आम चुनाव में भाजपा ने 282 सीटें जीतीं थी। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 543 में से 336 सीटें मिली थी। देखने वाली बात यह होगी कि यह आंकड़ा कितना बढ़ सकता है। यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा- एनडीए  को कितनी सीट मिलती है और विपक्ष में कितनी अधिक दरारें होती हैं। कांग्रेस ने 2004 में 145 सीटों और 12 सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। विपक्षी दलों की रणनीति अपने वोटों, सीटों पर ध्यान केंद्रित करने की नहीं है – बल्कि उनकी रणनीति भाजपा के वोटों को बिखेरने की है।

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