नई दिल्ली: दुनिया भर में चर्चित कोहिनूर हीरे (Kohinoor) को लेकर आपने कई बातें सुनी होगी लेकिन अब RTI के द्वारा एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने खुद एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी दी है।
दरअसल, लुधियाना के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी कि क्या 108 कैरेट के कोहिनूर हीरे को अंग्रेजों को उपहार में दिया गया था या किन्हीं अन्य कारणों से इसे हस्तांतरित किया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता रोहित सभरवाल ने कहा कि मैंने करीब एक महीने पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में यह आरटीआई डाली थी। हालांकि मुझे नहीं पता था कि मेरी आरटीआई को ASI को भेज दिया गया है। अब एएसआई ने सवालों के जवाब दिये हैं।
एएसआई का कहना है कि ‘राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखे रिकॉर्ड के मुताबिक लॉर्ड डलहौजी और महाराजा दिलीप सिंह के बीच 1849 में लाहौर संधि हुई थी, जिसके तहत लाहौर के महाराजा ने कोहिनूर हीरा को इंग्लैंड की महारानी को समर्पित कर दिया था’।
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हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने आरटीआई में जो जवाब दिया है, उसमें और केंद्र सरकार के जवाब में विरोधाभास है। दरअसल, केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 में उच्चतम न्यायालय में कहा था कि कोहिनूर की अनुमानित कीमत 20 करोड़ डॉलर से ज्यादा है जिसे न तो चुराया गया था, न ही अंग्रेज शासक उसे ‘‘जबर्दस्ती’’ ले गए थे, बल्कि पंजाब के पूर्ववर्ती शासकों ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया था। अब ASI का कहना है कि लाहौर के महाराजा ने इसे खुद ‘समर्पित’ किया था।
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बता दें, औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के पास चले गए इस बेशकीमती हीरे के मालिकाना हक को लेकर विवाद है और भारत सहित कम से कम चार देश इस पर अपना दावा जताते हैं। जवाब में संधि के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है कि ‘‘बेशकीमती पत्थर कोहिनूर को महाराजा रणजीत सिंह ने शाह सुजा उल मुल्क से लिया था जिसे लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को समर्पित कर दिया’’।
जवाब के मुताबिक संधि से प्रतीत होता है कि ‘‘दिलीप सिंह की इच्छा पर अंग्रेजों को कोहिनूर नहीं सौंपा गया था। संधि के समय दिलीप सिंह नाबालिग थे।’’ इतिहास के जानकार बताते हैं कि कोहिनूर का मतलब ‘प्रकाश का पर्वत’ होता है और यह बड़ा, रंगहीन हीरा है जो 14वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण भारत में पाया गया था।
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