राजस्थान: मानवाधिकार की सख्ती और तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद प्रदेश की जेलों में सजा काट रहे कैदियों के आत्महत्या करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। हकीकत यह है कि हर दूसरे महीने एक कैदी आत्महत्या कर रहा है। इस साल ही पहले आठ महीनों में चार कैदियों ने आत्महत्या की है। अगर वर्ष 2013 से अब तक के आंकड़े देखे जाएं तो राज्य में केंद्रीय और जिला कारागारों में सजा काटने के दौरान कुल 444 कैदियों की मौत हुई है। इनमें से 33 कैदियों ने आत्महत्या की है।
दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक, जेलों में होने वाली कैदियों की मौतों में करीब साढे सात प्रतिशत मौत आत्महत्या के रूप में हो रही हैं। आत्महत्या के मामलों में ज्यादातर कैदियों ने फांसी लगाकर जान दी। हैरानी यह है कि सबसे ज्यादा सुरक्षित मानी जाने वाली जेलों में आत्महत्याएं उस हालात में भी हो रही हैं, जबकि बैरक में छत के पंखे, बाथरूम में शावर नहीं लगाए जाते।
यहां तक कि स्नानघर में भी नल छोटे साइज के और कम उंचाई पर लगाते हैं। इतना ही नहीं जेल में होने वाली प्रत्येक मौत की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेशानुसार न्यायिक जांच होती है। अब तक के मामलों की न्यायिक जांच में जेल प्रशासन के 6 लोग दोषी पाए गए और उन पर कार्रवाई भी हुई।
जेल प्रशासन इन मौतों पर यह कहकर खुद का बरी कर रहा है कि जो कैदी मरने की ठान लेता है, वह बस केवल मौका देखता है और अकेला रहते ही आत्महत्या कर लेता है। प्रशासन की ओर से जेल परिसर में पूरी सावधानी बरती जाती है। जिन कैदियों ने आत्महत्या की, उनमें कुछ मानसिक रोगी थे। इन कैदियों ने कंबल का फंदा बनाकर आत्महत्या की है।
कब कितने कैदियों ने आत्महत्या की
साल मौतें आत्महत्या
2013 73 7
2014 62 4
2015 73 3
2016 98 9
2017 77 6
2018 61 4
(आंकड़े अगस्त 2018 तक)
जेलों की स्थिति
प्रदेश में 99 केंद्रीय, जिला और सब जिला कारागार हैं। इनमें 20 हजार से ज्यादा कैदी हैं। 37 जेल ऐसी हैं। जिनमें क्षमता से ज्यादा कैदी है। जेलाें में 62 विदेशी कैदी भी बंद हैं।
कहां होती है चूक
जेल परिसर में कैदियों की मौत और आत्महत्या करना जेल प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। भले ही कैदी किसी भी अपराध की सजा काट रहा हो, लेकिन बंदीगृह में उसकी सुरक्षा करना जेल प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। प्रत्येक जेल में हॉस्पिटल की सुविधा होती है उसके बावजूद ज्यादातर कैदी किसी न किसी बीमारी से पीड़ित होकर मरे हैं। इनके अलावा आत्महत्या करने वाले कैदियों की मानसिक स्थिति का आकलन नहीं कर पाना भी एक कारण है।
क्या होती है कार्रवाई
केंद्रीय और जिला कारागार सहित अन्य कारागाराें में बंद कैदी द्वारा आत्महत्या, बीमारी या प्राकृतिक मौत होने पर पूरे मामले की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयाेग के आदेशानुसार न्यायिक जांच होती है। जांच में दोषी पाएं जाने वाले अधिकारी, कर्मचारी पर कानूनी कार्रवाई होती है।
जिस कैदी ने आत्महत्या करने की ठान ली है, वह केवल मौका देखता है। आत्महत्या करने वालों में कुछ कैदी मानसिक रोगी हैं। कैदियों के मानसिक तनाव को दूर करने के लिए जेल परिसर में घर का सा माहौल रखा जाता है। जेल में होने वाली हर डेथ ही एनएचआरसी के आदेशानुसार न्यायिक जांच होती है। जांच की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई होती है। – रुपिंद्र सिंह, महानिरीक्षक पुलिस, जेल
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