एक ही देश में दो झंडे और दो निशान स्वीकार नहीं-श्यामा प्रसाद मुखर्जी

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श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान राजनीति में प्रखर राष्ट्रवाद की मिसाल है। डॉ. मुखर्जी राष्ट्रवाद, देश प्रेम की वह प्रखर भावना है, जो देश की अखण्डता, देश की जनता के प्रति समर्पित करने की प्रेरणा देता है। मुखर्जी का जन्म बंगाल में हुआ था। उनके पिता आशुतोष मुखर्जी अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे।

मुखर्जी की आज के दिन यानी 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। यह क्या वास्तविक मौत थी या कोई साजिश? बरसों बाद भी ये राज, राज ही रहा। आज हम आपको बताते है आखिर ऐसा क्या हुआ था कि उनकी अचानक हुई मौत ने देश में तूफान ला दिया था।

उन्होंने 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। आपने गाँधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। एक बार आपने कहा-“वह दिन दूर नहीं जब गाँधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।” आपने नेहरूजी और गाँधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया।

अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में आपने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। आपने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। आपके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।

1950 में भारत की दशा दयनीय थी।  एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको  स्वीकार नहीं थे। उन्होंने अपने पद से त्याग देकर कश्मीर को भारत में विलय कराने में जुट गए। कहा जाता है धारा 370 के तहत कश्मीर जाने के लिए पहचानपत्र और सरकार से परमिट लेना पड़ता था। जो मुखर्जी को स्वीकार नहीं था।  अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए आपने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए आपने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।

इस व्यवस्था के विरोध में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना अनुमति के ही जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने का निश्चय किया। वे 8 मई 1953 को सायंकाल जम्मू के लिए रवाना हुए। उनके साथ वैद्य गुरुदत्त, श्री टेकचन्द, डा. बर्मन और अटल बिहारी वाजपेयी आदि भी थे। 13 मई 1953 को रावी पुल पर पहुंचते ही शेख अब्दुल्ला की सरकार ने डा. मुखर्जी, वैद्य गुरुदत्त, पं. प्रेमनाथ डोगरा और श्री टेकचन्द को बंदी बना लिया। शेष लोग वापस लौट आये।

डा. मुखर्जी ने 40 दिन तक जेल जीवन की यातनायें सहन कीं। वहीं वे अस्वस्थ हो गये या कर दिये गये। 22 जून को प्रात: 4 बजे उनको दिल का दौरा पड़ा। उन्हें उचित समय पर उचित चिकित्सा नहीं दी गयी। इसके परिणामस्वरूप अगले ही दिन 23 जून 1953 को रहस्यमयी परिस्थितियों में प्रात: 3:40 पर डा. मुखर्जी का देहान्त हो गया।

डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू के शेख अब्दुल्ला प्रेम पर बलिदान हो गये, लेकिन इसके बाद जो तूफान उठा, उससे देश में से दो निशान, दो विधान और दो प्रधान समाप्त हो गये, जम्मू-कश्मीर में प्रवेश की अनुमति लेने की व्यवस्था भी समाप्त हुई और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग घोषित किया गया। जम्मू कश्मीर को भारतीय संविधान के तहत लाया गया और शेख अब्दुल्ला को वजीरे आजम का पद गंवाना पड़ा।

हालांकि आज भी कश्मीर में खुद का झंड़ा है, धारा 370 लागू, कई अन्य गंभीर मुद्दे है लेकिन आज भारतीय गर्व से कह सकता है जम्मू कश्मीर हमारे देश का हिस्सा है। इसका पूरा श्रेष्य केवल मुखर्जी को जाता है।

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