गर्भवती महिलाओं को निजी अस्पतालों में नहीं मिलेगा इलाज, सरकार ने बताई ये वजह

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नई दिल्ली: नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन मिशन (एनएचपीएम) स्कीम के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए निजी अस्पतालों के दरवाजे बंद रहेंगे। यानी सिजेरियन और नॉर्मल डिलीवरी में उन्हें यहां बीमा का लाभ नहीं मिलेगा। उन्हें सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराना होगा।

हालांकि आपात स्थिति में गर्भवती का प्रसव निजी अस्पताल में हो सकेगा। सिजेरियन के लिए इंश्योरेंस कंपनी सरकारी अस्पताल को 9 हजार रुपए देगी। एनएचपीएम स्कीम के तहत देश के साढ़े 10 करोड़ से अधिक गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को पांच लाख रुपए का सरकारी हेल्थ बीमा मिलेगा।

सरकार ने 27 तरह की बीमारियां तय की हैं जिनका बीमा के तहत सिर्फ सरकारी अस्पताल में ही इलाज होगा। इनमें आठ तरह की बीमारियां स्त्री एवं प्रसूति रोग से जुड़ी हैं, 17 तरह की मानसिक बीमारियां हैं जबकि तीन अन्य हैं। इसके अलावा मामूली एक्सीडेंट जिसमें प्लास्टर की जरूरत होती है या दूसरे इलाज की जरूरत हो, उसे शामिल नहीं किया गया है।

वहीं, मोतियाबिंद की सर्जरी की सुविधा भी कॉरपोरेट अस्पताल में इस स्कीम के तहत नहीं होगी। कान, नाक और गले से संबंधित कुछ बीमारियों के इलाज के लिए भी पहले सरकारी अस्पताल ही जाना होगा। इन बीमारियों का इलाज निजी अस्पताल में तभी होगा जब सरकारी अस्पताल यह लिख कर दें कि उनके यहां इन बीमारियों का इलाज नहीं हो सकता है।

डिप्टी सीईओ डॉ. दिनेश अरोड़ा का कहना है कि केंद्र की ओर से नीति तैयार की गई है। इसके बावजूद यदि राज्य सरकार चाहे तो इसमें बदलाव कर सकती है। वह सरकारी और निजी या दोनों तरह के अस्पतालों में सभी तरह के इलाज की सुविधा दे सकती है।

आपात स्थिति में निजी अस्पताल में प्रसव
आयुष्मान भारत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. इन्दू भूषण का कहना है कि गर्भवती का इलाज सरकारी अस्पतालों में पहले से ही मुफ्त में हो रहा है। हालांकि आपात स्थिति में निजी अस्पताल में प्रसव की इजाजत होगी।

614 तरह की जांच में अस्पताल को पहले लेनी होगी इजाजत
स्कीम के तहत कुल 1352 तरह की जांच, प्रोसीजर और सर्जरी की व्यवस्था होगी। इसमें 614 तरह की जांच, प्रोसीजर और सर्जरी के लिए अस्पताल को इंश्योरेंस कंपनी और स्टेट हेल्थ एजेंसी से पूर्व में इजाजत लेनी होगी। ऐसा करने का मकसद निजी अस्पताल की ओर से धांधली की संभावना कम करना है।

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