क्या भारतीय युवा भटक रहा है या सिर्फ वहम है!

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पिछले महीने की खबरों पर नजर डालें तो पीएनबी घोटाला और नीरव मोदी सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। इस घोटाले का खुलासा होते ही देश के कोने-कोने से बैंकिंग घोटालों की जैसे बाढ़ ही आ गई। ऐसा इस बार ही नहीं हुआ है हर बार ऐसा ही होता है हमारे देश में। समय के पन्नो को पलट कर देखोंगे तो आपको हर क्षेत्र में ऐसे अनेक उदाहरण नजर आ जायेंगे। जब पोंजी स्कीम का खुलासा हुआ तो एक के बाद एक इसी तरह के मामलें सामने आने लगे । बाबा रामदेव ‘पतंजलि’ को ले आये तो सब आयुर्वेद के हवाले हो गए। पेरियार की मूर्ति से कहानी शुरू हुई तो बाकी मूर्तियों के भी वही हालात हुई। मनोरंजन की दुनिया की बात करें तो सोनू को कौन भूल सकता है, यहाँ तक की कपिल मिश्रा भी केजरीवाल के खिलाफ उसी को तोड़–मरोड़ कर लग गए। ढूंढने जाओ तो हर क्षेत्र में आपको ढ़ेर सारे उदाहरण मिल जायेंगे कि हमारे युवाओं ने सिर्फ किसी एक को फॉलो किया हैं, उसको तोड़ने – मरोड़ने में दिमाग लगाया है ना कि कुछ नया करने में।

एप्पल के संह-संस्थापक स्टीव वोजनिएक ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि भारतीय युवाओं के लिए सफलता का मतलब सिर्फ एकेडमिक एक्सिसिलेंस, अच्छी जॉब और मर्सिडीज खरीदना ही हैं, रचनात्मकता तो गायब ही है। अगर इस कथन और ऊपर के घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा है। दुनिया की सबसे बड़ी ब्रेन फैक्ट्री से अब अगर इस नकल करने वाले निकालेंगे तो उनके लिए सफलता का मतलब सिर्फ आलिशान गाड़ी और बंगला खरीदना ही रह जायेगा ना, क्योंकि नकल करने से तो ऐसी ही सफलता हासिल होगी ना। भारतीय युवाओं में दिमाग की कमी नहीं है परन्तु नई चीज के अविष्कार में नहीं, बस पुरानी वस्तुओं या तकनीकी को ही बेहतर बनाने में लगे हैं ।

यह सब सोच कर लगता है कि भारतीय युवा किस दिशा में बढ़ रहा है ? उसकी रचनात्मकता कहां गायब हो गई है या वो इस दिशा में सोचना ही नहीं चाहता ? अगर इन सवालों के जवाब की तरफ अगर नजर लगायेंगे तो मुझे ये नजर आता है कि हमारा युवा सिर्फ पश्चिमी चीजों के पीछे भाग रहा है और हमारी शिक्षा प्रणाली भी हमें इस दायरें से आगे सोचने का मौका ही नहीं दे रही। गौतम बुद्ध, आर्यभट, हरगोविंद और चरक आदि के वंशज आज सिर्फ एक दिशा की तरफ आँख बंद कर के किसी अन्य के दिखाएं लक्ष्य की तरफ बिना दिमाग लगाये दौड़े जा रहे हैं। उनकी बताई मंजिल को पाने के लिए जो उनकी वास्तविक क्षमता को निराधार करती जा रही है, उनके सोचने की क्षमता को विकलांग बनाती जा रही है ।

हमारा इतिहास रहा है कि हमने दुनिया को आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग वाले बहुत सारे लोग दिए है, जिन्होंने दुनिया में स्वयं और देश का नाम रोशन किया है लेकिन आज हम ज्यादातर सिर्फ नकल करने वाले मस्तिष्क को ऊर्जावान भोजन करवा कर नए भारत का सपना संजो रहे हैं । आज फिर हमको इस दिशा में सोचने की आवश्यकता है कि युवाओं में किस तरह से आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग के साथ –साथ जोखिम उठाने की क्षमता को विकसित किया जाये। ये बदलाव आवश्यक है वर्ना हम सिर्फ कठपुतलियां बन कर रह जायेंगे और इस दुनिया के अन्य देश हमारे युवाओं से ज्यादा पैसे का लालच देकर उनके देश में बाबूगिरी करवाएंगे। ब्रिटिश राज में उनको यहाँ पर बाबू चाहिए थे तो उन्होंने हमारे युवाओं को ऐसे ही सपने दिखा कर अपना काम चलाया, अब उनको विदेशों में जरुरत है तो यहाँ के चंचल दिमाग को उनके हिसाब से ढाल कर उनके वहां बुला कर हमारे युवा से एक नए तरह की गुलामी करवा रहे हैं।

हमारी आदत हो गई है कि हम इंतजार करते है और जब भी किसी और का किया कुछ नया नजर आता है तो उसके पीछे भेड़ चाल की तरह लग है। मुझे नेपोलियन द्वारा उनके लोगों के लिए कहा गया एक कथन याद आ रहा है कि इंतजार करना छोड़ो, क्योंकि सही समय कभी नहीं आता, समय को सही बनाना पड़ता हैं । हमको शिक्षा नीति में बदलाव के प्रयास करने चाहिए जिस से आने वाला युवा नम्बरों के लिए पागल होता नहीं अपनी मानसिक शक्तियों को विकसित करता हुआ अपना ध्यान समस्या खोजने में नहीं समस्या का समाधान खोजने के लिए आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग करता हुआ नजर आये। हम सम्पूर्ण नीति पर काम करने की स्थिति में नहीं हो तो अपने आस – पास के युवाओं से इस की शुरुवात कर सकते है, उनको खोजी बनाये, उनको मानसिक भोजन कैसे उपलब्ध हो सकता है वो रास्ता बतलाए। युवाओं के प्रेरणा स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “ एक नया विचार ले, उस विचार को अपनी ज़िन्दगी बना ले । उसके बारे में सोचिए, उसके ही सपने देखिए । आपका मन, मांसपेशियां, आपके शरीर का हर एक अंग उस विचार से भरपूर हो तो सफलता आपसे दूर नहीं रह सकती, वह स्वयं आपकी गोद में आकर बैठ जाएगी । यह समय सफलता के नशे में चूर होने का नहीं है यह वो समय है कि उस विचार से नया सपना, बड़ा सपना देखा जाये ।“

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