मक्का मस्जिद ब्लास्ट: तेज हुई राजनीति, BJP का ये नेता बोला-हिंदू टेरर शब्द के लिए चिदंबरम पर हो केस दर्ज

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हैदराबाद: तेलंगाना के मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की नामापल्ली स्पेशल कोर्ट ने सोमवार को 11 साल बाद फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्वामी असीमानंद समेत 5 आरोपियों को बरी कर दिया। कांग्रेस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने इसको लेकर NIA पर हमला बोला है। ओवैसी ने NIA को बहरा और अंधा तोता करार देते हुए केस में राजनीति दखल का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा सभी आरोपियों ने जून 2014 के बाद अपने बयान से पलटना शुरू किया था। NIA ने अपने काम को सही तरीके से नहीं किया, या उन्होंने करने नहीं दिया गया। अगर इसी तरह चलता रहा तो देश में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का क्या हुआ। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी जांच एजेंसी पर सवाल उठाए।

फैसला आने के बाद गृह मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि ने कहा कि ब्लास्ट केस के सारे सबूत झूठे थे और इसमें हिंदू आतंकवाद जैसी कोई बात नहीं थी। कांग्रेस ने भ्रम फैलकर लोगों की छवि धूमिल की। बता दें कि 18 मई, 2007 को हुए ब्लास्ट में 9 लोगों की मौत और करीब 58 जख्मी हुए थे। सीबीआई के द्वारा शुरुआती जांच के बाद केस 2011 में एनआईए को ट्रांसफर किया गया था।

इस केस में कब क्या-क्या हुआ-

18 मई, 2007: मक्का मस्जिद में शुक्रवार को ब्लास्ट हुआ जिसमें 9 की मौत और लगभग 58 लोगों के घायल होने की खबर मिली थी।
जून 2010: आरएसएस एक्टिविस्ट सुनील जोशी को सीबीआई ने अहम आरोपी बनाया था। जोशी की 29 दिसंबर, 2007 को तीन अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
19 नवंबर, 2010:अभिनय भारत संगठन के सदस्य स्वामी असीमानंद को सीबीआई ने अरेस्ट किया। इसी दौरान जांच एजेंसी ने देवेंद्र गुप्ता और लोकेश शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया।
18 दिसंबर, 2010:असीमानंद ने कोर्ट के सामने ब्लास्ट में शामिल होने की बात कबूली।
अप्रैल 2011: इस केस की जांच सीबीआई से एएनआई को सौंप दी।
23 मार्च, 2017: हैदराबाद कोर्ट ने असीमानंद को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह हैदराबाद और सिकंदराबाद नहीं छोड़ सकते। वह सात साल तक जेल में रहे।
31 मार्च, 2017: असीमानंद जेल से रिहा।

क्यों इतनी लाइमलाइट में हैं असीमानंद?
असीमानंद छात्र जीवन में ही वह आरएसएस से जुड़ गए। असीमानंद साल 1977 में आरएसएस के फुल टाइम प्रचारक बने। 2007 में राजस्थान के अजमेर शरीफ में हुए ब्लास्ट केस में एटीएस ने देंवेंद्र गुप्ता नाम के आरोपी को गिरफ्तार किया तो असीमानंद ने मजिस्ट्रेट के सामने भी ये कबूल किया था कि अजमेर दरगाह, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और कई अन्य जगहों पर हुए बम ब्लास्ट में उनका और कई अन्य हिंदू चरमपंथी संगठनों का हाथ है। अगली बार में असीमानंद अपने बयान से पलट गया। उन्होंने कहा कि पहले वाला बयान उन्होंने NIA के दबाव में दिया था। हालांकि, जयपुर हाईकोर्ट ने अजमेर शरीफ ब्लास्ट में असीमानंद को बरी कर दिया। खबरों के अनुसार, असीमानंद पर समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगांव ब्लास्ट में भी शामिल होने के आरोप हैं।

हिंदू टेरर शब्द के लिए चिदंबरम पर हो केस दर्ज: स्वामी
चैनल टाइम्स नाउ के मुताबिक, सुब्रमण्यन स्वामी इस मामले में चिदंबरम पर मामला दर्ज करना चाहिए। स्वामी ने कहा कि हिंदू टेरर थिअोरी के लिए पूर्व गृह मंत्री पर केस होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू टेरर शब्द के जरिए हिंदुओं पर सवाल उठाए। स्वामी ने कहा, ‘इसके पीछे बड़ी साजिश थी। इस मामले में शामिल लोगों को सजा मिलनी चाहिए।’ उन्होंने कहा कि हिंदू टेरर शब्द का प्रयोग कर वे RSS को निशाना बनाना चाहते थे और उसे बैन करना चाहते थे।

भगवा आतंकवाद पर चिदंबरम के बोल-
पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने अगस्त 2010 में पुलिस अधिकारियों के एक सम्मेलन के दौरान कहा था,’देश के कई बम धमाकों के पीछे भगवा आतंकवाद का हाथ है। भगवा आतंकवाद देश के लिए नई चुनौती बनकर उभर रहा है।’ चिदंबरम के इस बयान पर उस समय विपक्ष में रही बीजेपी-शिवसेना ने संसद में भी हंगामा किया था। तब यूपीए चीफ सोनिया गांधी के करीबी महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने चिदंबरम को जुबान संभालकर बोलने की नसीहत देते हुए कहा था कि आतंक का भगवा या हरा रंग नहीं होता सिर्फ काला रंग होता है।

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