अबोध कन्या की आवाज़ – फ़रियाद मेरी ना काम आयी

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माँ अभी मैं छोटी हूँ
मत छीनों मेरा बचपन
कैसे मैं रह पाऊंगी
तड़प – तड़प मर जाएंगी
अभी खेल रहीं मैं गुड़ियों से
फिर क्यूँ मुझे बोझ समझती हो,
उठाने दो मुझे भी बस्तों का बोझ,
पढ़ने दो मुझे,उड़ने दो
देखना मैं कलेक्टर बन जाऊंगी,
थोड़ा तो दो सहारा मुझे माँ,
ना गैर हुँ न परायी हूँ
थोड़ा अपनापन दिखाओ माँ,
गुमसुम क्यूँ हो गयी मेरी माँ,
सुनो आँचल में छुपा लो माँ,
क्या हो गया जो मैं बेटी हूँ,
हर फर्ज मैं निभा दूँगी
मुझे क़ाबिल होने दो माँ,
सुनो मेरी प्यारी माँ,
अब तो कह दो सब झूट हैं माँ..
बप्पा देखो, माँ शांत हैं,
तुम तो बोलो बप्पा
क्या धरती पर हम श्राप हैं? बोलो बप्पा
बोलो ना, कच्ची  कली हुँ तोड़ो ना,
किस सोच में तुम भी डूब गये,
अपना मुख खोलो ना,
जानते हो सब बप्पा तुम,
मुरझा जाऊंगी खिलूंगी कब,
रोको बप्पा हिम्मत करो,
समाज की नीति को बदल दो तुम,
बेटियों पर उपकार करो
रोज दफ़न ना उपहास करो,
बिलख बिलख कर रह जाउ,
तब क्या होत जब मर जाऊ,
बोलो बप्पा बोलो ना,
कोई तो आगे आकर मेरा हाथ थाम
लो… बप्पा… माँ बोलो ना
भाई देख मेरे हाथ  क्यूँ पिले कर दिये हैं
रोको भाई हमको जुदा  कर रहें हैं…
भाई कैसे फिर हम-तुम खेलेंगे
कंचे की आवाजें तुम्हे रुला देंगी,
सुनो मेरे भाई जो बोझ हैं मेरे सिर पर,
घूँघट कैसे मैं सम्भालूंगी,
ताने आएंगे रोज पीहर पर
कि
संस्कार क्या दिया हैं बेटियों को,
एक पल्ला भी सम्भालती नहीं
क्या खाक रहेगी हवेली में,
ताने सुन सुन सिसकूँगी,
रोज दुआ में अंतिम संस्कार माँगूँगी,
सुन मेरे भाई तू ही कुछ हिम्मत दिखा,
बदल दे सारे रीति को,
समझ ले बहना जो उपहार दिया,
राखी में भाई, माई ना बापू काम आये,
फ़रियाद मेरी ना काम आयी
हार गयी फिर आज मैं,
जीत गयी रीति और रिवाज,
हाय ये कैसी दुनिया बनायी,
जहाँ मेरी बात किसी को समझ ना आयी,
फिर एक अबोध हुई कुर्बान…
©baanee
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