बहुत जल्दी जवान हो रहे हैं हमारे बच्चे, इन्हें रोकिए वरना….?

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जिस उम्र में हम और आप दुनियादारी से अनजान रहते थे, उसी उम्र में आपके और हमारे बच्चे मर्डर और रेप करने लगे हैं। हम पुलिस की गाड़ी और पुलिस को देखकर घरों में छिप जाया करते थे लेकिन हमारे बच्चे पुलिस से जुबान लड़ाने में भी नहीं हिचक रहे और पूरी प्लानिंग के साथ खून से अपना हाथ रंग रहे हैं। जिन हाथों में खिलौने और कॉपी-किताब होने चाहिए, उन हाथों में बच्चे चाकू और मर्डर का ब्लू प्रिंट लेकर घूम रहे हैं। आखिर हम क्या कर रहे हैं? क्या उनकी परवरिश में हम कोई कमी कर रहे? क्या हम उन्हें उनके हिसाब से मौहाल नहीं दे पा रहे?

क्या हम उन्हें आजादी नहीं दे पा रहे? क्या हम उन्हें वे चीजें दे रहे हैं जो उनके पास नहीं होने चाहिए? यह सवाल खुद से पूछने और इस पर सोच विचार करने का वक्त आ गया है और इसमें देर करना हमारी आने वाली पीढ़ी को बर्बाद कर देगा। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गुरुग्राम के रायन स्कूल में हुआ प्रद्युम्न मर्डर आज एक चर्चित हत्याकांड जैसा हो गया है। इस स्कूल में पिछले साल 7 साल के प्रद्यूम्न की हत्या हुई जिसके बाद देशभर के स्कूल्स में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे, लेकिन दुःख की बात यह है कि अभी भी हम नींद में हैं और केवल सवाल ही उठा रहे हैं। यहां आपको याद दिला दें कि प्रद्युम्न की हत्या का आरोपी एक नाबालिग ही है। तीन महीने बीतने को हैं लेकिन अभी तक हम किसी निर्णय पर नहीं पहुंचे हैं।

आखिर हमारे बच्चे ये सब क्यों कर रहे हैं। इस पर चर्चा करने से पहले हाल की उन तीन घटनाओं को याद करते हैं जिनमें तीन अलग-अलग शहरों के स्कूल्स के बच्चों का कत्ल हुआ है। जिसमें आरोपी तो या तो हाथ नहीं आए या फिर पुलिस खुद ही मामले को दबाती हुई नजर आई।

गुरुग्राम के रयान स्कूल में प्रद्युम्न का मर्डर
पिछले साल गुरुग्राम के इंटरनेशनल स्कूल रयान में 7 साल के प्रद्यूम्न नाम के बच्चे की हत्या स्कूल में हुई। इसके बाद सबसे पहले स्कूल के कंडक्टर अशोक को गिरफ्तार किया गया और उसके बाद उसी स्कूल के 11वीं में पढ़ने के लिए एक छात्र को इस हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इस केस की जांज सीबीआई की टीम कर रही है। आरोपी छात्र को फरीदाबाद के बाल सुधार गृह में रखा गया है। बता दें कि मर्डर का आरोपी छात्र नाबालिग है।

लखनऊ में 7 साल के ऋतिक पर चाकू से हमला
गुरुग्राम के बाद प्रद्यूम्न की तरह ही राजधानी लखनऊ के अलीगंज स्थित ब्राइटलैंड स्कूल में इसी साल जनवरी में पहली कक्षा के छात्र ऋतिक (7) को स्कूल की एक छात्रा ने वॉशरूम में बंधक बनाकर चाकू से गोद डाला और भाग निकली। पुलिस ने स्कूल के प्रिंसिपल रचित मानस की तहरीर पर अज्ञात छात्रा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। पुलिस सीसीटीवी फुटेज की मदद से हमलावर छात्रा को तलाश रही है।

रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि त्रिवेणीनगर निवासी और हाई कोर्ट में काम करने वाले राजेश कुमार सिंह के दोनों बेटे हितेश (12) और ऋतिक (7) ब्राइटलैंड स्कूल में पढ़ते हैं। हितेश छठी और ऋतिक पहली का छात्र है। ऋतिक मंगलवार को क्लास में था। उसने बताया कि सुबह साढ़े दस बजे प्रार्थना होनी थी। तभी एक दीदी (स्कूल की छात्रा) क्लास में आईं। उन्होंने नाम पूछा और साथ चलने को कहा। वह मुझे लड़कों के वॉशरूम में ले गईं और भीतर से बंद कर लिया। इसके बाद मेरे मुंह में दुपट्टा ठूंस दिया और उसी से हाथ पीछे करके बांध दिए। उसके बाद चाकू से ताबड़तोड़ चार वार किए। पहला वार माथे, दूसरा सीने से नीचे और तीसरा व चौथा पेट में लगा। मैं गिर पड़ा तो वह मुझे वहीं छोड़कर वॉशरूम बाहर से बंद कर भाग गईं। ऋतिक के मुताबिक हमला करने वाली छात्रा जूनियर सेक्शन की स्कूल यूनिफॉर्म में थी।  ऋतिक फिलहाल अस्पताल में जिन्दगी और मौत से जूझ रहा है। बता दें कि आरोपी छात्रा 7वीं कक्षा में पढ़ती है।

नई दिल्ली में 9वीं के छात्र की हत्या
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नौवी कक्षा के एक छात्र तुषार कुमार (16) की रहस्मयी मौत से एक बार फिर सनसनी फैली है। इस मामले में एक नाबालिग को पुलिस ने पकड़ भी लिया है। घटना इसी साल 1 फरवरी की है जब तुषार अपने स्कूल के बाथरूम में बेहोशी की हालत में मिला था और जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया था। पुलिस ने कहा कि इस मामले में तीन छात्रों को हिरासत में लिया था। पुलिस ने सीसीटीवी में देखा था कि कुछ छात्र तुषार को पीट रहे हैं। सभी छात्र एक ही क्लास के हैं। तुषार जीवन ज्योति पब्लिक स्कूल में नौवीं क्लास में पढ़ता था।

बच्चों के हिंसक होने के पीछे कहीं ये कारण तो नहीं!
अभी तक तो मर्डर की बात हुई। अब आपको ब्लू व्हेल गेम की भी याद दिला दें। उस गेम ने हमारे मासूम से बच्चों पर इतना असर कर दिया था कि बच्चे सुसाइड करने लगे थे और नसें काटने लगे थे। खैर, अब मुद्दे की बात यह है कि आखिर हमारे बच्चे इस रास्ते पर क्यों जा रहे? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला स्मार्टफोन, दूसरा वीडियो गेम, तीसरा सीआईडी और क्राइम पेट्रोल जैसे सीरियल्स।

परिवार जिम्मेदार या शिक्षा
प्रतिदिन बच्चों के हिसंक होने की खबरें इस और सोचने को भी मजबूर करती है कि उनका परिवार कैसा होगा? ज्यादातर मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे हिसंक अपने आसपास के वातावरण को देखकर होते हैं यानी की परिवार। आजकल परिवारों में कई तरह व्यवहार, आपसी झगड़े देखें जाते हैं जो बच्चों पर गलत असर डालते हैं। ज्यादातर बच्चों पर उनके माता-पिता के आपसी रिश्तों का प्रभाव पड़ता है। जो एक बच्चे का हिंसक होने का बड़ा कारण है। आपसी रिश्तों के तनाव के कारण बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई से दूर होने लगे। जिस कारण इस तरह की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। शिक्षकों का मानना है कि स्कूल्स कैसे भी उन्हें वहां बेहतर इंसान बनाने को ही कहां जाता है। इसलिए इस तरह की घटनाओं के लिए स्कूलों के वातावरण और शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाना गलत है।

स्मार्टफोन
इसमें कोई दोराय नहीं है कि स्मार्टफोन, इंटरनेट और सोशल मीडिया हमारे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं। इंटरनेट जैसी आभासी दुनिया में एक क्लिक पर कई प्रकार के कंटेंट मिल रहे हैं जो बच्चों को नहीं मिलने चाहिए। वहीं सोशल मीडिया पर बिना सर्च किए ही बच्चों की टाइमलाइन पर हिंसक और हिंसा के लिए उकसाने वाले कंटेंट व वीडियो मिल रहे हैं। ऐसे में पहला जिम्मेवार तो स्मार्टफोन है।

वीडियो गेम
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि गेम खेलने से बच्चों का दिमाग तेज होता है लेकिन अब इस पर नए सिरे से विचार और रिसर्च करने की दरकार है, क्योंकि अब गेमिंग का कॉन्सेप्ट बदल गया है। पहले के गेम दिमागी कसरत वाले होते थे, वहीं अब मारपीट और हिंसक गेम मार्केट में आने हैं और बच्चों को ये गेम पसंद भी आ रहे हैं। अगर आप जरा गौर करें तो हम किसी फिल्म में मारपीट का सीन देखते हैं तो हम भी थोड़ी देर के लिए उसमें घुस जाते हैं और यह भी कहने से नहीं चुकते कि ‘क्या मारा है और मारे’ तो सोचिए जो बच्चे दिनभर में 3-4 घंटे गोली, तोप चलाने और फाइटिंग गेम खेल रहे हैं उनके दिमाग पर कितना असर पड़ता होगा।

टीवी सीरियल्स
सिनेमा को समाज का आईना कहा गया है और यह सच भी है कि सिनेमा का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। कई ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जिनकी तहकीकात में पता चलता है कि मर्डर की प्लानिंग फिल्म देखकर बनाई गई थी। अब क्राइम पेट्रोल और सीआईडी सीरियल की ही बात करें तो बड़ों के लिए ये सीरियल्स तो आगाह करने के लिए हैं, लेकिन बच्चों के लिए ये किसी मीठे जहर से कम नहीं हैं। बच्चों को यह नहीं पता कि मौत क्या होती है और मर्डर करने का अंजाम क्या होता है लेकिन उन्हें यह पता है कि सीरियल में ऐसा हुआ था तो मुझे भी करना चाहिए।

तो इन पहलुओं पर आप भी गंभीरता से विचार कीजिए और बच्चों पर नजर रखिए, नहीं तो आने वाले परिणाम आपके सामने होंगे जब आपके बच्चे के हाथ मिट्टी से नहीं बल्कि खून से सने होंगे और आप खुद इसकी वजह तलाश रहे होंगे।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य और व्यक्त किए गए विचार पञ्चदूत के नहीं हैं, तथा पञ्चदूत उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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