भारत में लीडरशिप की कमी और हम

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किसी महान व्यक्ति का कथन है- एक लीडर का काम है कि वह अपने लोगों को जहां वो हैं, वहां से ऐसी जगह ले जाए, जहां वो नहीं गए हैं। भारत के संदर्भ में बात की जाए तो आज हर क्षेत्र में लीडर और नेतृत्व यानी लीडरशिप की कमी दिख रही है। अतीत में भारत विश्वगुरु रहा है। पर आज हम इस आलेख लेख में वर्तमान भारत में नेतृत्व के अभाव पर चर्चा करेंगे। नेतृत्व का अभाव हर क्षेत्र में दिख रहा है चाहे वह सत्ता का क्षेत्र हो अथवा अर्थव्यवस्था का। विपक्ष और छात्र संगठनों में भी नेतृत्व का अभाव साफ दिखता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया। हमारे देश में संसाधनों—मानव या वित्तीय—की कोई कमी नहीं है, पर यदि किसी चीज की कमी है तो वह एक ‘दृष्टि’ या विजन की है। हालांकि, नेतृत्व प्रदर्शन की कोई निश्चित और समग्र परिभाषा भी नहीं गढ़ी गई है। भारत महान नेताओं का देश है जो देश में प्रभावी ढंग से शासन करने के साथ-साथ राष्ट्रीय हितों की रक्षा भी कर रहा है। विश्व राजनीतिक परिदृश्य में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए यह काम पूरा करना आसान काम नहीं है। महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसे नेता भारत की तरफ से विश्व के परिप्रेक्ष्य को बदलने में अनिवार्य भूमिका निभाते थे। जिस तरह से उन्होंने सीमा विवाद, कश्मीर और अनाज की बढ़ती कमी, जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दों को संभाला, वह काबिले तारीफ है। इसके चलते उन्हें वास्तव में सम्मान प्राप्त हुआ। नेताओं के दूरदर्शी और व्यावहारिक लक्षणों को इस तथ्य से आंका जा सकता है कि उन्होंने दुनिया के सर्वोत्तम संभव खंडों को शामिल करके भारत के संविधान का निर्माण किया था। उन्होंने सत्ता के किसी भी हिस्से को, किसी भी झुकाव के बिना सामने से देश का नेतृत्व किया। पर आज….श्रेष्ठ भारत बनाने की बात होती है। कहा जाता है कि हम व्यवस्थाओं को बदल सकते हैं। हमारे में ताकत है, पर इस ताकत को पहचानने की जरूरत है। पर मूल सवाल है कि हमारी कमी क्या है? … हमारे देश में और आज पूरी दुनिया में  हर क्षेत्र में स्किल डेवलेपमेंट की बात हो रही है।

दक्ष लोगों की मांग बढ़ रही है। और हम…?

जब दुनिया भर के लोग भारत के बारे में सोचते हैं, तो वे हलचल भरे शहरों, जीवंत बाजारों, गूंजती प्रौद्योगिकी केंद्रों और एक युवा और जीवंत कार्यबल की कल्पना करते हैं। मानव पूंजी भारत की सबसे बड़ी संपत्तियों में से एक है। फिर भी, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था आर्थिक पिरामिड के नीचे लाखों भारतीय नागरिकों को नहीं छूती है। वजह… इस बात में दो राय नहीं कि हमारे राजनीतिक नेतृत्व में कमी के कारण ही। भारत लंबे समय से पिछड़ता चला जा रहा है। एक लेखक ने लिखा है —’किसी भी आन्दोलन की सफलता के लिये कुशल नेतृत्व का होना अति आवश्यक है। परन्तु सामान्यतः हम लोगों के मन में ‘ नेता ‘ या ‘ योग्य नेतृत्व ‘ के बारे में कोई स्पष्ट धारणा नहीं होती। इसी से हम हर जगह पिछड़ते जाते हैं।

अगस्त 2013 टाटा समूह के मुखिया रतन टाटा यह कहने को मजबूर हुए थे कि देश में नेतृत्व की कमी के कारण आर्थिक समस्या गहरा रही है। देश पर से दुनिया का भरोसा उठ गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि देश को ऐसे नेताओं की जरूरत है जो आगे आकर देश का नेतृत्व करें। राष्ट्रहित से ऊपर के निजी एजेंडों पर काम न किया जाए। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा था- कई ऐसे नेता हैं, जिनके सार्वजनिक जीवन का मैंने अपने पूरे जीवन में आदर किया है। लेकिन कुछ ऐसा हुआ है, जिसके कारण यह नेतृत्व क्षीण हो गया है। आज तो हालत यह हो गई है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिलना भी नेतृत्व की कमी कहा जाता है। बच्चे कुपोषित हैं, डाक्टरों की कमी है, स्कूल और अध्यापक नहीं है, स्वच्छता नहीं दिख रही, अदालतों में परेशान करने के लिए विरोधियों द्वारा झूठे मुकदमें तक लिखाना सभी में नेतृत्व की कमी को दोष दे दिया जाता है। बात सच भी है। भाजपा राहुल गांधी पर आरोप लगा रही है कि उनमें नेतृत्व की क्षमता नहीं है, कांग्रेस नेतृत्व की कमी से जूझ रही है। तो कांग्रेस कह रही है कि नरेन्द्र मोदी ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को पीछे धकेल दिया है।

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