आडंबरों की दुनिया

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समय सतत, निरंतर बदलता जा रहा है।
समय के साथ -साथ मनुष्य भी बदल गया ।
अति आधुनिक होने की होड़ में
हम अपने संस्कारों को ताक पे रख के
दिखावों की दुनिया बसा बैठे हैं,
बाह्य आडंबरों की दुनिया ।

अपनी भीतर की सुंदरता को सहेज के रखने के बजाय
हम बाह्य सौंदर्य बढ़ाने के चक्रव्यूह में उलझते जा रहे हैं ।
सहजता तो जैसे अब हमारे व्यवहार मे रह ही नहीं गयी ।

होड़ है तो कैसी,
यह दिखाने की
कि
हमारे पास बड़ी गाड़ी है,
बड़ा घर है,
बच्चा बड़े विद्यालयों में पढ़ रहा हैं,
हर साल विदेश भ्रमण ,
नौकर चाकर आदि ।
घर के खाने में तो स्वाद रह ही नहीं गया ,
आप सभ्य तब कहलाते हैं
यदि
आप जानते हैं कि किस होटेल में क्या मिलता है ?
आपको सब जानकारी होनी चाहिए
चाहे आपको यह तक पता न हो
कि
आपके पड़ोसी के घर में क्या हो रहा है ।

बड़े बड़े मॉल में जा कर,
बिना सोचे कितना मर्ज़ी पैसा ख़र्च करें
पर
एक सड़क पर बैठे ग़रीब फेरीवाले से मोल भाव ज़रूर करेंगे ।

आडंबरों की सबसे बड़ी दुकान हैं हमारी हाई क्लास शादियाँ ,
पानी की तरह पैसा बहाया जाता है,
केवल दुनिया को दिखाने हेतु ।
खाना इतना बनाया जाता है
कि
पूरा गाँव तृप्त हो जाए
पर
डाइयटिंग करने वाले लोग,
ज़रा सा खाएँगे बाक़ी सब व्यर्थ ।

अमीर लोगों के आडंबर,
कम पैसे वालों पे भारी पड़ते हैं ।
शादियों में अपनी चादर से ज़्यादा पैर पसारने की कोशिश में मुसीबत में पड़ जाते हैं।

सौन्दर्य भी आडंबर का ग़ुलाम हो गया है,
नए नए प्रसाधन बाज़ार में नित्य आ रहे हैं
जो सब का ध्यान आकर्षित करते हैं ।
काले से गोरे,
गंजे से लहराते बाल पाएँ,
मोटापा से मुक्ति आदि
जैसे यदि बाह्य सुंदरता नहीं तो जीवन व्यर्थ।

समय को आदर दें,
बाह्य सौंदर्य या बाह्य आडंबर को त्याग,
अपनी भीतर की सुंदरता को बढ़ाएँ ।
सहज बनें,
सहजता अपनाएँ ।
बाहर की सुंदरता तो नष्ट हो जाएगी
परंतु
आप की अच्छाई कभी समाप्त न होगी ।
दान कीजिए और सुख ढूँढिए,
भूखे को खाना खिला,
ठंड में ठिठुरते इंसान को कपड़े दे कर ।

आडंबर का कर त्याग,
सहज बन
कर परोपकार
कमा नेकी का धन

लेखिका – मोनिका कपूर
यह विचार हमें लेखिका ने MIRAKEE पर चल रहे मेरी कलम से के तहत प्राप्त हुआ था……

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