नई दिल्ली: महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने गांधीजी की हत्या के मामले की दोबारा जांच का विरोध किया है। सोमवार को वे वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह के जरिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। याचिका में कहा, हम 70 साल पुराने इस मामले को दोबारा खोलने का विरोध करते हैं। तुषार ने याचिकाकर्ता पंकज फडनीस के याचिका दायर करने के अधिकार पर भी सवाल उठाए। इसके बाद कोर्ट ने तुषार से पूछा कि वे किस हैसियत से इस मामले में दाखिल हो रहे हैं।
इस पर तुषार की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अगर कोर्ट इस मामले में सुनवाई करते हुए नोटिस जारी करता है तो स्थिति स्पष्ट कर देंगे। लेकिन तुषार गांधी ने ट्विटर पर ही सुप्रीम कोर्ट को जवाब दे दिया। उन्होंने लिखा,’बापू के हत्यारों ने हत्या की परिस्थितियों को झुठलाने के लिए एक अभियान चलाया है। यह उनके हाथों में लगे खून को धोने का निराशाजनक प्रयास है।’ इसके बाद उन्होंने अपना पूरा नाम लिखते हुए ट्वीट किया और बताया कि मामले में यह मेरी स्थिति है।
दरअसल, मुंबई में अभिनव भारत के ट्रस्टी और शोधकर्ता पंकज फडनीस ने गांधीजी की हत्या के मामले की दोबारा जांच की मांग की है। उन्होंने गांधीजी की मौत को इतिहास का सबसे बड़ा कवरअप बताया है। उन्होंने कहा है, ‘गांधीजी की हत्या में तीन लोग शामिल थे और नाथूराम गोडसे सहित सिर्फ दो लोगों को मौत की सजा मिली। सजा 15 नवंबर 1949 को दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया, इसलिए मामले को इस कोर्ट ने नहीं देखा।’
कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र शरण को न्यायमित्र नियुक्त किया था। शरण ने राष्ट्रीय अभिलेखागार से जरूरी दस्तावेज मिलने का हवाला देकर कोर्ट से 4 हफ्ते का वक्त मांगा था, जो कोर्ट ने मान लिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कई किंतु-परंतु हैं, लिहाजा कोर्ट अमरेंद्र शरण की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहेगी।
तुषार ने ट्विटर पर दिया जवाब: तुषार ने अपनी किताब ‘लेट्स किल गांधी’ के मुख पृष्ठ की तस्वीर पोस्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘इस मामले में यह मेरा हस्तक्षेप का अधिकार (लोकस स्टैंडी) है।’ एक और ट्वीट किया,’मैं तुषार अरुण मणिलाल मोहनदास करमचंद गांधी हूं। ये मेरी स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट कृपया नोट करे।’
उर्दू में दर्ज हुई थी एफआईआर: जनवरी1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधीजी की हत्या हुई थी। इसकी एफआईआर उसी दिन तुगलक रोड थाने में दर्ज की गई थी। उर्दू में लिखी एफआईआर में पूरी वारदात दर्ज है। ये आज भी थाने के रिकॉर्ड रूम में मौजूद है। मामला दोबारा खुलता है तो ये एफआईआर महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
I am Tushar Arun Manilal Mohandas Karamchand Gandhi. My Locus Standi, Supreme Court, please note.
— Tushar (@TusharG) 30 October 2017
क्या है तीन गोलियों वाली थ्योरी
फडनीस ने कई आधारों पर जांच को फिर से शुरू करने की मांग की थी, उन्होंने दावा किया था कि यह इतिहास का सबसे बड़ा कवर-अप (लीपापोती) है। उन्होंने ‘तीन गोलियों वाली थ्योरी’ पर भी सवाल उठाया। इसी थ्योरी के आधार पर विभिन्न अदालतों ने आरोपी गोडसे और आप्टे को दोषी करार दिया था। उन्हें फांसी दे दी गई थी। जबकि विनायक दामोदर सावरकर को साक्ष्यों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया था। फडनीस ने दावा किया कि दो दोषी व्यक्तियों के अलावा कोई तीसरा हमलावर भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसी और सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) की पूर्ववर्ती ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विसेस (ओएसएस) ने महात्मा गांधी को बचाने की कोशिश की थी या नहीं।
बांबे हाई कोर्ट का फैसला
उन्होंने बांबे हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें छह जून 2016 को दो आधारों पर उनकी जनहित याचिका रद्द कर दी गई थी। पहला यह कि तथ्यों की जांच-पड़ताल एक सक्षम अदालत ने की है और इसकी पुष्टि शीर्ष अदालत तक हुई है। दूसरा यह कि कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट जांच-पड़ताल पूरी करके वर्ष 1969 में सौंपी थी जबकि वर्तमान याचिका 46 वर्ष बाद दायर की गई।
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