मैं एसिड विक्टम नहीं हूं उतनी ही नॉर्मल हूं, जितने कि आप…

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फेसबुक पर कई ऐसे पेज है जो लोगों की अनकही कहानियों को आप तक पहुंचाने का काम करते हैं। ऐसा ही पेज है Human Of Bombay जो लाखों लोगों की प्रेरक कहानियों को अपने पेज पर लिखता जिसमें आज शब्बो की कहानी साझा की गई। जिसे फेसबुक पर काफी लाइक और शेयर मिल रहे है। आप भी पढ़िए।

शब्बो के खत में लिखा है…

यही कोई मैं दो साल की थी। पापा घर पर भागते हुए, उस वक्त में अपनी मां की गोद में खेल रही थी और पापा ने आते ही मां के ऊपर एसिड डाल दिया, जिसका आधा हिस्सा मेरे ऊपर गिर गया। मैं इतनी छोटी थी कि मुझे उसका दर्द भी याद नहीं अगर कुछ याद है तो उस घटना ने हमेशा के लिए मेरी मां को मुझसे छिन लिया। पापा मुझे अनाथाश्रम में छोड़कर शहर भाग गए।

शब्बो बताती है कि मुझे इनमें से कुछ भी याद नहीं ये सब मुझे मेरे डॉक्टर गोरे ने बताया है।  जिन्होंने अगले कई सालों तक मेरा इलाज किया। मुझे अनाथाश्रम से काफी प्यार और सहयोग मिला है। शब्बो बताती है कि अब मैं बाहर निकलना चाहती हूं लेकिन बाहर की दुनिया इतनी भी अच्छी नहीं है जैसा हम लिखते और पढ़ते है। काफी संघर्ष है। अनाथाश्रम के दिनों को याद करते हुए वह बताती है मैं कोने में बैठकर अकेले लंच करती। क्लास में सबसे आखिरी बेंच पर अकेली बैठती और पूरी कोशिश करती कि मैं किसी को दिखाई न दूं। मुझे हर वक्त मेरे शरीर पर पड़े दाग नजर आते थे और लगता था कि सब मुझे ही देख रहे हैं।

वक्त के साथ समझ आया कि ये सब मेरे दिमाग की उपज थी। कॉलेज में पढ़ते हुए ही मुझे बहुत प्यारे दोस्त मिले, जिनके साथ मैंने अपनी जिंदगी के कुछ सबसे खूबसूरत लम्हे बिताए। सबसे मजेदार याद शुरुआती स्लीपओवर की है। हम कुछ दोस्त साथ में रात बिता रहे थे। बात करते हुए मुझे नींद आ गई और मेरी आंखें खुली हुई थीं।

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एसिड अटैक की वजह से मेरी पलकें बंद नहीं हो पाती हैं, ये बात मेरे दोस्तों को तब पता नहीं थी। वे मुझे जागा हुआ समझकर देर तक बातें करते रहे। बाद में हम सबने मिलकर खूब मजाक किया कि इसका कितना फायदा मुझे क्लास में मिल सकता है। मैं खुली आंखों से लैक्चर में सो सकती हूं और किसी को पता भी नहीं चलेगा। तब पहली बार मैंने खुद को एक सुपरपावर की तरह महसूस किया।

अक्सर मेरे दोस्त पूछते हैं कि क्या मैं अपने पापा से नफरत करती हूं या मेरे भीतर बदले की भावना है। मेरा जबाव है-  ‘नहीं। मैं उन्हें माफ कर चुकी हूं। जरूर उनके भीतर कोई इतना गहरा अंधेरा कोना रहा होगा, जो उन्होंने इतना बड़ा अपराध किया। अब उनकी इस हरकत को याद करना उसी अंधेरे को पालना-पोसना होगा। मैंने उस बात को पूरी तरह से भुला दिया है। मेरी जिंदगी में नफरत के लिए कोई जगह नहीं।’

अब मेरा सारा ध्यान एक अच्छी नौकरी पाने पर है। मुझे मेरी पिछली नौकरी से जल्द ही निकाल दिया गया क्योंकि मैं औरों से अलग दिखती थी और चेकअप के लिए मुझे छुट्टियां लेनी पड़ती थीं। लेकिन मुझे यकीन है कि जल्द ही मुझे नई नौकरी मिल जाएगी।

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मुझे दुख तभी होता जब लोग मुझे एसिड अटैक विक्टम की तरह देखते बोलते हैं। मैं विक्टम नहीं हूं। उतनी ही नॉर्मल हूं, जितने कि आप और आसपास का कोई और। मैं और मेरे शरीर के दाग अब साथी बन चुके हैं, और मैं इनके साथ ही अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। मैं दुनिया में अपनी पहचान बनाना चाहती हूं, एसिड अटैक के कारण नहीं, बल्कि अपनी उन खूबियों के लिए जो मुझमें हैं।

आपको बता दें अगर आप भी शब्बो की मदद करना चाहते है तो Human of bombay के पेज पर जाकर डोनेट कर सकते हैं।

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