पायदान चढ़ती भाजपा और बढ़ती आतंकी हिंसा

अब सरकार नए नारे के साथ आगे आई है। यह नारा है- साथ है, विश्वास है...हो रहा विकास है। इस नारे के माध्यम से सरकार जनता के बीच जा रही है और अपने कार्यों को जनता को बता रही है।

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इस बात में कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा सफलता के पायदान तय कर रही है। मोदी-अमित शाह की अगुवाई में भाजपा आज शिखर पर पहुंचती दिख रही है। पूर्व में भाजपा के लिए ऐसी कल्पना करना भी संभव नहीं था। विभिन्न शहरों में नगर निगमों के चुनावों से लेकर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जहां पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं, वहीं उपचुनावों में भी पार्टी ने सफलता के झंडे गाड़े हैं। भाजपा ने अपने राजनीतिक इतिहास में असम में मील का पत्थर स्थापित किया है। केरल और पश्चिम बंगाल चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन काफी दमदार रहा। पारंपरिक रूप से कमजोर माने जाने वाले इन राज्यों में भाजपा अपनी छाप छोडऩे में सफल रही। असम और मध्यप्रदेश के उपचुनाव तथा राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में निकाय चुनावों में भाजपा ने अच्छी सफलता हासिल की। चंडीगढ़ में नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा से स्पष्ट जीत हासिल की। अब सरकार नए नारे के साथ आगे आई है। यह नारा है- साथ है, विश्वास है…हो रहा विकास है। इस नारे के माध्यम से सरकार जनता के बीच जा रही है और अपने कार्यों को जनता को बता रही है। पर, इन सबके बीच कश्मीर समस्या पहले जैसी ही बनी हुई है। आतंकी हिंसा की घटनाएं बढ़ी ही हैं। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भरोसा दिया है कि सरकार कश्मीर के लिए स्थायी समाधान के लिए काम कर रही है, लेकिन कुछ समय लग सकता है। देखा जाए तो मोदी की अगुवाई वाली सरकार के मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दूसरे कार्यकाल के आखिरी तीन साल की तुलना में जम्मू-कश्मीर में 42 प्रतिशत से अधिक मौतें आतंकवाद की वजह से हुईं हैं। दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल (एसएटीपी) द्वारा भारत को लेकर जो आकड़े संकलित किए गए हैं, उसके अनुसार आतंकी हिंसा में मारे जाने वाले सुरक्षा कर्मियों की संख्या यूपीए -2 के पिछले तीन सालों की तुलना में १११ से बढ़कर भाजपा के पहले तीन वर्षों में 191 हो गई है। यानी 72 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ये आंकड़े 24 मई 2017 तक के हैं। इस बीच चौंकाने वाली एक खबर और है। सुरक्षा एजेंसियों ने जो आंकड़े संकलित किए हैं, उसके अनुसार आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी  बुरहान वानी की पिछले साल जुलाई में मौत के बाद लगभग 67 कश्मीरी युवक आतंकी बन गए हैं। आतंकी बनने वाले कुल युवकों में दो 16 साल और एक 15 साल की उम्र सहित 63 युवक 30 साल की कम उम्र के हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात तो यह है कि आतंकियों का यह नया समूह उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला है। पीएच.डी., एम.फिल., डिग्री होल्डर और 2 स्नातकोत्तर के अलावा 6 स्नातक हैं। 5 ऐसे हैं जो इंजीनियर और बी.टेक की पढ़ाई कर रहे थे। 10 अन्यों ने 12वीं कक्षा पूरी की है, एक दर्जन ने 10वीं कक्षा पूरी की हैं, 3 मदरसे में पढ़े हैं, जिनमें हाफिज/इमाम शामिल हैं और शेष ने हाई स्कूल तक पढ़ाई की है। इनमें से सिर्फ 3 ऐसे हैं जो कभी स्कूल नहीं गए हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने यह भी खुलासा किया है कि आतंकियों में शामिल नए युवकों में 47 हिजबुल, 18 लश्कर में शामिल हुए हैं। 2 के बारे में पता नहीं चल सका है। लोग अभी भूल नहीं होंगे कि भाजपा ने 7 अप्रेल 2014 को अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया था जिसमें आतंकवाद पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाए जाने की बात कही गई थी। पर यूपीए -2 के पिछले तीन सालों के मुकाबले भाजपा शासन में जम्मू-कश्मीर में 42 प्रतिशत अधिक मौतें होना यही दर्शाता है कि सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतर पाई है। तुलनात्मक रूप से इस राज्य में नागरिकों की मौतों की संख्या में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  गृह मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2016 में ही 322 आतंकी घटनाएं हुईं। वर्ष 2016 में 82 जवान शहीद हुए और 15 सिविलियन्स मारे गए। यद्यपि उत्तर-पूर्व में आतंकी हिंसा से होने वाली मौतों की संख्या में 12 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि यह क्षेत्र भारत के सुरक्षा बलों के लिए ज्यादा असुरक्षित है।

बड़ा सवाल

1-इन सबके बीच एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या चुनावी जीत की इसी श्रृखंला को बनाए रखने के लिए ही अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण मुद्दे को फिर उभारा जा रहा है। विवादित ढ़ांचा गिराए जाने के मुकदमें को फिर से खोला गया है कि मुकदमें की कार्रवाई से जनता में आक्रोश की भावनाएं  भड़कें और लोग अपना मत भाजपा की झोली में डाल दें?

2- अभी का ताजा मामला है तीन तलाक जिसको सरकार बड़े जोर शोर से भुनाना चाहेगी। लेकिन इन सबके बीच एक रोड़ा गोरखपुर हत्याकांड, गोरी लकेंश की मौत उठा सोशल मीडिया पर बवाल क्या बड़ा असर डाल पाएगा या एक बार फिर भूली जनता मोदी सरकार के मीठी गोली के लपेटे में आ जाएगी। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि मोदी जी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद के मुद्दे पर अपने को साबित नहीं कर पाई है जिसकी उससे अपेक्षा की जा रही थी। देखने वाली बात होगी कि अब शेष बचे दो साल में सरकार कितना कुछ कर पाती है। सब कुछ वक्त की चादर में लिपटा हुआ है।

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।