तीन तलाक पर आए फैसले के बाद से अब मुस्लिम महिलाएं कई अन्य कुप्रथाओं के लिए अपनी आवाज उठा रही है। धर्म कुछ भी कहे, अच्छा या बुरा, लोग उसे मानते हैं तथा उसका सम्मान करते हैं। क्योंकि यह उनकी आस्था एवं विश्वास ही तो है जो उन्हें उस धर्म से जोड़े रखती है। ऐसा ही एक विश्वास मुस्लिम समुदाय में खतना को लेकर है।
इस्लाम धर्म में ‘खतना’ एक रिवाज है। जिसे कई लोग बुरा मानते हैं। खतना जिसे सुन्नत भी कहा जाता है। एक शारीरिक शल्यक्रिया है जिसमें आमतौर पर मुसलमान 5-7 साल के बच्चों के लिंग के ऊपर की चमड़ी काटकर अलग की जाती है। इस प्रक्रिया में औरतें छोटी बच्चियों के हाथ-पैर पकड़ते हैं और फिर clitoris पर मुल्तानी लगाकर वह हिस्सा काट दिया जाता है। औरतों की खतना का यह रिवाज अफ्रीकी देशों के कबायली समुदायों में भी प्रचलित है लेकिन अब भारत में भी ये शुरू हो गया है। अफ्रीका में यह मिस्र, केन्या, यूगांडा जैसे देशों में सदियों से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि खतना से औरतों की मासित धर्म और प्रसव पीड़ा को कम करती है। इसके अलावा कई लोगों को ये भी मानना है खतना करवाने से उनमें सेक्स की ईच्छा से मुक्ति भी मिल जाएंगी।
तीन तलाक के अहम फैसले के बाद, बोहरा मुस्लिम समुदाय की मासूमा रानाल्वी ने पीएम के नाम एक खुला खत लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की मांग की है। मासूमा लिखती हैं- बोहरा समुदाय में सालों से ‘ख़तना’ या ‘ख़फ्ज़’ प्रथा का पालन किया जा रहा है। बोहरा, शिया मुस्लिम हैं। मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है। जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादीमां उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं।
बच्ची को ये नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है। दाई या आया या वो डॉक्टर उसके प्राइवेट अंग को काट देते हैं। इस प्रथा का दर्द ताउम्र के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है। इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, बच्ची या महिला के यौन इच्छाओं को दबाना।
बता दें कि यूएन ने 6 फरवरी को महिलाओं के खतना के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है। इस साल का थीम ‘साल 2030 तक एफजीएम के उन्मूलन के जरिए नए वैश्विक लक्ष्यों को पाना’ रखा गया है। दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है। इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया। भारत में खतने को लेकर कोई कानून नहीं है।
पीएम को खुला खत लिखने वाली रानालवी कहती हैं, “वे हमेशा कहते हैं, छोटा सा कट है, बस मामूली सा कट है। छोटी सी बात है। लेकिन ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जहां ये छोटे से कट खतरनाक साबित हुए हैं।”गौरतलब है कि इस खतने की वजह से बहुत ज्यादा खून बहता है और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इनमें सिस्ट बनना, संक्रमण, बांझपन तो आम हैं ही, बच्चे के जन्म के समय जटिलताएं बढ़ जाती हैं और इसमें नवजात की मृत्यु का जोखिम बढ़ना भी शामिल है।
फोटो साभार: DW
WHO की रिपोर्ट में बताया खतने के तरीके:
अलग अलग कबीलों में खतने के तरीकों में अंतर है। पोकोट समुदाय में योनि का मुंह सिल दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक महिला खतना चार तरह का हो सकता है। पूरी क्लिटोरिस को काट देना, कुछ हिस्से काटना, योनी की सिलाई और छेदना या बींधना।
क्या कहती है यूनिसेफ की रिपोर्ट:
यूनिसेफ के आंकड़े कहते हैं कि जिन 20 करोड़ लड़कियों का खतना होता है उनमें से करीब साढ़े चार करोड़ बच्चियां 14 साल से कम उम्र की होती हैं और इन तीन देशों से आती हैं: गांबिया, मॉरितानिया और इंडोनेशिया. इंडोनेशिया की आधी से ज्यादा बच्चियों का खतना हुआ है।
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