गोरखपुर ट्रेजडी: 2 दिनों में और 35 बच्चों की मौत, इन चार लोगों पर होगी कार्रवाई

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उत्तर प्रदेश: गोरखपुर में पिछले दो दिनों में 35 और बच्चों की मौत हो चुकी है। मेडिकल कॉलेज में 10 से 12 अगस्त के बीच 48 घंटे में 36 बच्चों की मौत पर डीएम की जांच रिपोर्ट सामने आ गई है। यूपी के सीएम से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक ये कह चुके हैं कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से नहीं हुई है, लेकिन डीएम की रिपोर्ट इन दावों पर गंभीर सवाल उठा रही है।

इन 4 लोगों की लापरवाही से हुई बच्चों की मौत

  • ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी पुष्पा सेल्स ने लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित की, जिसके लिए वो जिम्मेदार है।
  • लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई लगातार होती रहे, इसके प्रभारी डॉक्टर सतीश हैं, जो अपना कर्तव्य ना निभाने के पहली नजर में दोषी हैं।
  • ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक संभालने की जिम्मेदारी भी डॉक्टर सतीश पर हैं, जिन्होंने लॉग बुक में एंट्री ठीक समय से नहीं की. ना ही प्रिंसिपल ने इसे गंभीरता से लिया।
  • प्रिंसिपल डॉक्टर राजीव मिश्रा को पहले ही कंपनी ने ऑक्सीजन सप्लाई रोकने की जानकारी दी थी, लेकिन दस तारीख को वो मेडिकल कॉलेज से बाहर थे।
  • प्रिंसिपल के बाहर रहने पर सीएमएस, कार्यवाहक प्राचार्य, बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ कफील खान के बीच समन्वय की कमी थी।
  • लिक्विड ऑक्सीजन कंपनी के भुगतान के बारे में आगाह करने के बावजूद और 5 अगस्त को बजट मिल जाने के बाद भी प्रिंसिपल को जानकारी ना देने के लिए लेखा अनुभाग के कर्मचारी दोषी हैं।

इस बीच पिछले 48 घंटे में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में 35 और बच्चों की मौत हुई है। इन बच्चों की मौत किस कारण हुई, जब ये सवाल प्रिंसिपिल पी के सिंह से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘बीते दिन 24 बच्चों की मौत हुई है।” जब इनसे पूछा गया कि क्या आपके पास इंसेफेलाइटिस को लेकर कोई डाटा है तो उन्होंने कहा, ”नहीं मेरे पास टोटल वॉर्ड का डाटा है।”

अब यहां पहला सवाल उठता है कि जब बच्चों की मौत के जो नए मामले आए हैं, उनकी सीधी वजह प्रिंसिपल तक नहीं बता पा रहे हैं तो स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री ने किस मशीन से जांच लिया था कि 36 बच्चों की जान ऑक्सीजन के ठप होने से नहीं हुई।

दूसरा सवाल खड़ा होता है कि अगर सरकार कहती है कि ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से बच्चों की मौत हुई नहीं तो डीएम की जांच रिपोर्ट में सीधे पहला दोषी ऑक्सीजन देने वाली कंपनी को क्यों माना गया ?

ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को दोषी क्यों माना जा रहा है,जबकि वो 6 महीने से गोरखपुर से लखनऊ तक बकाया भुगतान की जानकारी दे रही थी?  जांच रिपोर्ट में सिर्फ ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी, प्रिंसिपल और डॉक्टर ही दोषी क्यों, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव तक को बकाया बाकी होने की जानकारी थी ? जांच रिपोर्ट कहती है कि ऑक्सीजन सप्लाई जीवन रक्षक कार्य है, तो क्या कोई कंपनी अपने घर से ऑक्सीजन देगी, जबकि छह महीने से कंपनी 63 लाख के बकाए की जानकारी दे रही थी।

डॉक्टर कफील खान को क्लीनचिट:

डीएम की जांच रिपोर्ट में बालरोग विभाग के प्रमुख डॉक्टर कफील खान को लगभग क्लीनचिट दी गई है. जबकि सरकार ने कार्रवाई करते हुए डॉक्टर कफील खान पर कोई गंभीर आरोप नहीं लगाए हैं. डीएम की जांच रिपोर्ट में इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की गई है.

सचिव स्तर की एक और रिपोर्ट आनी बाकी

हांलाकि अभी सचिव स्तर की एक और रिपोर्ट आनी बाकी है, लेकिन गोरखपुर में बच्चों की मौत लीपापोती करने में जुटी सरकार अब नए नारे के साथ उतर रही है। बीजेपी ने स्वच्छ उत्तर प्रदेश, स्वस्थ उत्तर प्रदेश का नारा दिया है और गोरखपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ झाड़ू लगाकर शुरुआत करने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री को लगता है कि सिर्फ झाड़ू लगाने से इंसेफ्लाइटिस और पूरे स्वास्थ्य महकमे में मौत बांटने वाली लापरवाही को साफ किया जा सकता है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 10 अगस्त की शाम ऑक्सीजन सप्लाई का रुक गई थी। जिसकी वजह से 36 बच्चों की मौत हो गई थी। बताया गया कि जब अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई रुकी थी और बच्चों की जान सिर्फ एक पंप के सहारे टिकी हुई थी।

क्यों हुआ ये हादसा?

अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी का 66 लाख रुपए से ज्यादा बकाया था। इस मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई का जिम्मा लखनऊ की निजी कंपनी पुष्पा सेल्स का है। तय अनुबंध के मुताबिक मेडिकल कॉलेज को दस लाख रुपए तक के उधार पर ही ऑक्सीजन मिल सकती थी। एक अगस्त को ही कंपनी ने गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज चिट्ठी लिखकर ये तक कह दिया था, कि अब तो हमें भी ऑक्सीजन मिलना बंद होने वाली है।

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