कोलकाता: हुगली नदी पर बना 78 साल पुराना हावड़ा ब्रिज कोलकाता का ही नहीं बल्कि पूरे देश की शान है। इस पुल के चर्चे विदेशों में भी है। बिना पिलर के बना ये ब्रिज हवा में झूलता हुआ नजर आता है। कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाला हावड़ा ब्रिज जैसा पुल संसार में बहुत कम ही हैं।
ब्रिटिश सरकार ने 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट पास किया था पर योजना बनने में ज्यादा वक्त लग गया। इस वजह से पुल का निर्माण 1937 में शुरू हुआ और 1942 में पुल बनकर तैयार हुआ। इस पुल को बनाने में 26,500 टन स्टील की खपत हुई थी। इस पुल को बनाने का काम जिस ब्रिटिश कंपनी को दिया गया था उस कंपनी से ये कहा गया था कि पुल के निर्माण में वो इंडिया के ही बने स्टील का इस्तेमाल करे।
कैसे पड़ा हावड़ा का नाम रवीन्द्र सेतु:
हावड़ा ब्रिज 2,300 फुट लंबा है तो वहीं इसकी ऊंचाई 1501 फुट है। गर्मियों के दिनों में इस पुल की लंबाई 3 फुट तक बढ़ सकती है। साल 1943 में इस पुल को आम लोगों के लिये खोल दिया गया। जब ये पुल बनकर तैयार हुआ था तब इसका नाम न्यू हावड़ा ब्रिज रखा गया।
14 जून 1965 को रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर इसका नाम रवीन्द्र सेतु रख दिया गया लेकिन बोलचाल की भाषा में आज भी लोग इसे हावड़ा ब्रिज के ही नाम से जानते है। इस पुल के निर्माण में ढ़ाई करोड़ रुपये का खर्च आया था। इस पुल से पहली बार एक ट्रामागाड़ी गुजरी थी। रोजाना इस पुल पर लगभग पांच लाख गाड़ियां गुजरती है और लगभग उतने ही लोग पैदल भी गुजरते है।
पुल पर मंडराता खतरा
हावड़ा ब्रिज पर खतरा मंडरा रहा है गिरने का खतरा। पान की पीक हावड़ा ब्रिज को कमजोर कर रही है। 78 हैंगर्स के सहारे खड़ा ये पुल पान की पीक से कमजोर हो रहा है। इसकी वजह खुद कोलकाता के ही लोग। हिंदी वेबसाइट ड्वायचे वेले के मुताबिक कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के चीफ इंजीनियर अमल कुमार मेहरा बताते हैं कि जिन खंभों पर पुल टिका है उनमें से कुछ खम्भों की मोटाई तो पिछले तीन साल में आधी रह गई है।
पीक की वजह से जगह-जगह खम्भों में दरारें पड़ गई हैं। मेहरा कहते हैं कि यह चिंता की बात है और रिपेयर के लिए पुल को बंद करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों की माने तो पान में ऐसी चीजें होती हैं जो बेहद खतरनाक होती है और वो स्टील तक को गला सकती है।
कोलकाता की सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब के डाइरेक्टर चंद्रनाथ भट्टाचार्य बताते हैं कि थूक के साथ मिलकर पान में मौजूद चीजें स्टील पर एसिड बनकर उसको नुकसान पहुंचाती है। 2005 में एक हजार टन वजनी कार्गो जहाज इससे टकरा गया था तब भी पुल पर उस जहाज के टकराने का कुछ असर नहीं हुआ था। लेकिन टैनिन के मिश्रण वाला थूक इसका दुश्मन बन गया है।
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