मोदी स्क्रिप्ट के अनुसार बिहार के मुखिया वही हैं, दुखिया नए हैं….

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बिहार में बुधवार शाम जिस तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदलता रहा, बीजेपी के स्ट्रैटेजिक फैसले उससे भी दोगुनी तेजी से सामने आते रहे। दो घंटे के अंदर विधायकों और विधान परिषद सदस्यों की बैठक निपटाकर पार्टी ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश के एक्शन और बीजेपी के रिएक्शन की तेजी ने एक बात तो साफ कर दी कि दोनों के बीच पर्दे के पीछे सारी स्ट्रैटजी पहले तय हो चुकी थी। ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू के साथ आने का फैसला नीतीश के इस्तीफे के तीन दिन पहले ही ले लिया गया था।

अभी हाल तक राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी के मुकाबले संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार उतारने के लिए नीतीश कुमार पहल कर रहे थे। इसके लिए 18 दलों का जो मोर्चा बन रहा था, नीतीश कुमार को उसका संयोजक बनाया गया था।

बीजेपी ने राष्ट्रपति प्रत्याशी का दांव कुछ ऐसा चला कि नीतीश कुमार को विपक्षी खेमा छोड़ कर भाजपा प्र्त्याशी के पक्ष में वोट डालना पड़ा। इसके बाद भी वे उप-राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी के पक्ष में खड़े थे।

लालू के कुनबे के भ्रष्टाचार के दाग से अपने को बचाने के लिए नीतीश कुमार ने जो दांव चला उसने ईमानदार नेता की उनकी छवि तो बनाये रखी लेकिन उनका नेता का दर्जा घटा दिया। इसी के साथ बीजेपी को बड़ा लाभ भी हो गया। जिस बिहार को बीजेपी चुनावी मैदान में हार गयी थी, वह उसकी झोली में आ गया।

ऐसे तैयार की गई स्क्रिप्ट:

2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी और सहयोगी दलों को जो हार मिली वह बीजेपी के लिए अप्रत्याशित थी और बीजेपी के रणनीतिकारों के गणित को फेल करती दिखी। यह वही दौर था जब बीजेपी ने अपने भीतर बदलाव किया और धीरे-धीरे नीतीश कुमार पर हमले कम करने की योजना बना ली और केवल लालू यादव और आरजेडी पर हमले तेज हो गए। इसी दौरान बीजेपी ने लालू यादव के केंद्र में कार्यकाल और राज्य की राजनीति के मामलों को लेकर हमले तेज कर दिए। राज्य बीजेपी के अध्यक्ष सुशील मोदी ने तो बाकायदा महीने की एक तारीख तक तय कर दी थी जब वह एक नया मुद्दा लेकर लालू यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे। बीजेपी ने लालू यादव और उनके परिवार को घेरना शुरू कर दिया।

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लंबी खीच-तान के बाद गुरु गोविंद सिंह की 350 वीं वर्षगांठ पर 5 जनवरी को पीएम मोदी और 10 जनवरी को बीजेपी प्रेसिडेंट अमित शाह पटना गए थे। यहां से शुरुआत हुई और फिर पटना से लेकर दिल्ली तक नीतीश का बीजेपी के नेताओं के साथ साथ संपर्क शुरू हो गया। इस साल 10 फरवरी को नीतीश सोची-समझी रणनीति के तहत पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की किताब के विमोचन समारोह में दिल्ली पहुंचे। संदेश गया कि वह मोदी के खिलाफ विपक्ष की नई जुगलबंदी के सूत्रधार बन रहे हैं, लेकिन जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो नीतीश ने उसी दिन बीजेपी की लीडरशिप में शामिल एक नेता के साथ लंबी मुलाकात की थी। इसके बाद जेडीयू महासचिव केसी त्यागी कई मीटिंग्स में संघ से जुड़े कई नेताओं के साथ दिखे। और मुलाकातों का नतीजा सबके सामने है।

2019 के लोकसभा चुनाव में आधी बाजी अभी से मार ली:
अब जाकर बीजेपी के राजनीतिक रणनीतिकारों को कुछ राहत मिली होगी। क्योंकि 2019 में अगर बीजेपी को कहीं से सबसे बड़ी चुनौती मिलनी थी तो वह बिहार और यूपी में मिलनी थी। इतना ही नहीं बीजेपी ने सीधे तौर पर एनडीए के सामने लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटों वाले राज्यों पर उन्हें कड़ी चुनौती देने वालों को शांत कर दिया है। बीजेपी ने न केवल बिहार में महागठबंधन तोड़ा है बल्कि बीजेपी ने इसी के साथ यूपी में बन रही महागठबंधन की संभावनाओं पर भी सेंध लगा दी है। यहां से यह साफ है कि बीजेपी ने आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में आधी बाजी अभी से मार ली है।

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  • चार कारण: जिसकी वजह से खराब हो रही थी सुशासन बाबू की छवि, बदलना पड़ा सहयोगी
    बीजेपी के इस हमले की छीटें नीतीश कुमार पर भी पड़ने लगी। बीजेपी लगातार नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने का दबाव बनाती रही। वहीं, नीतीश कुमार जिन्हें बिहार में लोग ‘सुशासन बाबू’ भी कहने लगे हैं, इससे परेशान हो उठे। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की छवि बेदाग ही है। उनपर अभी तक कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है और शराबबंदी और नोटबंदी के समर्थन और बेनामी संपत्ति पर उनके वार ने उन्हें और ऊंचा बना दिया। तभी यह तय हो गया कि महागठबंधन के दो अहम दलों में तनाव बनना तय था और गठबंधन की डोर पर टेंशन इतना बढ़ा की वह बुधवार शाम को टूट गया। इसी के साथ नीतीश कुमार की ‘घर वापसी’ हो गई।
    1) पेट्रोल पंप घोटाला: लालू यादव के बेटे तेज प्रताप पर धोखाधड़ी के जरिये पटना के नजदीक बेऊर पेट्रोल पंप हासिल करने का आरोप लगा। जब तेज प्रताप पेट्रोल पंप के लिए इंटरव्यू में बैठे, तब वे बेऊर की उस 43 डिसमिल जमीन के मालिक नहीं थे जिसका दावा किया था।
    2) बेटियों के नाम शेल कंपनियां: तेजस्वी के खिलाफ बिहार के सबसे बड़े मॉल का प्रमोशन कर रही कंपनी में भारी शेयर रखने का आरोप है। लालू की तीन बेटियों के खिलाफ भी शेल कंपनियों में डायरेक्टर होने का आरोप हैं। लालू परिवार पर करोड़ों रुपए के भारी-भरकम फ्री गिफ्ट भी जांच के दायरे में है।
    3) मनी लॉड्रिंग केस: ईडी ने लालू की बेटी मीसा भारती की कंपनी से जुड़े एक चार्टर्ड एकाउंटेंट को गिरफ्तार किया। उस पर आठ हजार करोड़ रुपए की मनी लॉड्रिंग का आरोप। मीसा और उनके पति से लगातार पूछताछ की प्रक्रिया जारी है।
    4) बेनामी संपत्ति जब्ती: 20जून को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने लालू यादव के रिश्तेदारों की 12 संपत्तियां जब्त कीं। ये संपत्ति लालू की बेटी मीसा और उनके पति शैलेश कुमार की है। तेजस्वी और राबड़ी देवी, रागिनी और चंदना यादव की हैं। इन संपत्तियों का मार्केट वैल्यू 175 करोड़ से ज्यादा है।
    बिहार में पिछले दिनों में जो कुछ घटा उसने भाजपा-विरोधी राजनीति को सबसे बड़ा झटका दिया है। बीजेपी-विरोधी खेमे के सबसे बड़े और विश्वसनीय नेता के रूप में नीतीश कुमार की हैसियत खत्म हो गयी। अब वे नरेंद्र मोदी के प्रबल प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। बल्कि, नरेंद्र मोदी और अमित शाह अब उनके नेता हैं। तो बात समझ आई बिहार के मुखिया वही हैं, दुखिया नए हैं।
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