लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार का इन दिनों विधानसभा सत्र जारी है। एक तरफ सीएम योगी के मंत्री स्वास्थ्य सिस्टम की कमियां गिनाने हुए कहते हैं कि प्रदेश में डब्ल्यूएचओ के मानदंडों के अनुरूप प्रति हजार लोगों पर एक भी डॉक्टर नहीं है। प्रति हजार लोगों पर बमुश्किल 0.63 सरकारी और निजी डॉक्टर हैं।
तो वही विधानसभा के बाहर डेयरी विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने समाचार एजेंसी भाषा से कहा कि ‘गाय के दुग्ध को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदेश सरकार गाय के दूध से बनी मिठाइयां मथुरा, अयोध्या, विंध्याचल और काशी जैसे धार्मिक स्थलों पर प्रसाद के रूप में उपलब्ध कराने की योजना बना रही है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर सब कुछ ठीक रहा तो श्रद्धालुओं को गाय के दूध से बनी मिठाइयों का प्रसाद उपलब्ध होगा।’
चौधरी ने कहा विरोधी दल सोचते हैं कि हम केवल हिन्दूवादी छवि के कारण गाय की बात करते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। सच्चाई यह है कि गाय का दूध प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और कोलेस्ट्रोल, कैंसर एवं किडनी की बीमारियों में लाभकारी होता है।
अब दोनों मंत्रियों की बातों पर गौर करते हुए एक नजर डालते है हाल ही मेें आई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर जिसमें साफतौर से बताया गया कि एक साल तक के बच्चों की मौतों के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है। बिहार के बाद सबसे ज्यादा ठिगने बच्चे उत्तर प्रदेश में ही हैं।
उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे ठिगनेपन का शिकार हैं। कुपोषण का एक दूसरा प्रकार उम्र के हिसाब से वजन न बढ़ना है, इसमें भी उत्तर प्रदेश के 39.5 प्रतिशत बच्चे सामने आए हैं, जबकि भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। यानी उत्तर प्रदेश में स्थिति राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।
स्टेट न्यूट्रीशन मिशन-2014 के तहत प्राप्त हुए आंकड़ों ने उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य सिस्टम की पोल खोल कर रख दी। आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में हर रोज 650 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो रही है। 70 प्रतिशत बच्चों का जन्म सरकारी अस्पतालों में होता है। इसके बावजूद न तो ब्रेस्ट फीडिंग को बढ़ावा मिल पा रहा है न ही माओं की सेहत सुधर रही है। 50 फीसदी माताएं खून की कमी से जूझ रही हैं।
ये आंकड़ें जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से जुटाया गया है। सरकारी आंकड़ों से इतर बात करें तो साल में तीन लाख से भी ज्यादा बच्चों की मौत हर साल कुपोषण से होती है। प्रदेश में 12 लाख 60 हजार बच्चे अति कुपोषित हैं। आंकड़ें बताते हैं कि हर 7वां बच्चा अंडरवेट है। आधे से ज्यादा बच्चों की लंबाई औसत से कम 6-5 साल की उम्र के चार में से तीन बच्चे एनीमिक 6 में 5 माताएं बच्चों को 6 महीने तक दूध नहीं पिलाती हैं।
इसके कारण बच्चों को पोषण नहीं मिल पा रहा है। महिलाएं खुद एनिमिया से पीडि़त हैं। डिलीवरी के लिए सरकारी संस्थाओं में आने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत एनिमिक होती हैं। ऐसी माताओं के बच्चों में 10 फीसदी की आईक्यू लेवल सामान्य से कम होता है। ऐसी माताओं के बच्चे अंडरवेट होते हैं। जबकि 35 लाख बच्चे पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण सूखा रोग से पीडि़त हैं।
अब ऐसे में जिस दूध को चौधरी साहब मंदिर में चढ़ावे के रूप में चढ़ाने की तैयारी में लगी है अगर वही दूध इन बच्चों के स्वास्थ्य पर खर्च करने की योजना बनाए तो फायदा गो रक्षक सरकार को ही होगा विपक्ष को नहीं।
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