नई दिल्ली: राजनीति में वन लाइनर कहें जाने वाले मुपावरापू वेकैंया नायडू को बीजेपी ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। कोंविद को राष्ट्रपति बनाने के वजह हम आपको पहले ही बता चुके है। अब आपको बताते हैं कि वो कौन-सी वजह है जिसके चलते वेंकैया को ही वाइस प्रेसिडेंट पोस्ट के लिए कैंडिडेट चुना गया है? एक नजर…..
राज्यसभा में सरकार के मददगार
उप राष्ट्रपति ही राज्यसभा सभापति होता है। 4 बार राज्यसभा सांसद रहे वेकैंया को इस सदन का काफी एक्सपीरियंस है। संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। राज्यसभा में एनडीए अब भी बहुमत में नहीं है। ऐसे में मनपसंद सभापति होने से सरकार को सहूलियत मिल सकती है। खासकर उन बिलों के मामलों में, जो राज्यसभा में अटकते रहे हैं।
2 साल में दक्षिण के 3 राज्यों में चुनाव
नायडू चौथी बार राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए हैं। अपर हाउस का उन्हें काफी एक्सपीरिएंस है। लिहाजा, राज्यसभा जहां मोदी सरकार को अपोजिशन के विरोध का लगातार सामना करना पड़ा है, नायडू के वहां चेयरपर्सन के रूप में पहुंचने से काफी फायदा हो सकता है। वो पहली बार 1998 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 2004, 2010 और फिर 2016 में भी यहां पहुंचे। कई पार्लियामेंट्री कमेटियों में भी नायडू रहे हैं।
1975 से 1977 के बीच इमरजेंसी के दौरान नायडू जेल में रहे। 1977 से 1980 के दौरान जनता पार्टी यूथ विंग के प्रेसिडेंट रहे। 1978 में ही आंध्र प्रदेश में एमएलए बने। वो साउथ में बीजेपी का सबसे मशहूर चेहरा हैं जो कभी विवादित नहीं रहा। बीजेपी ने उन्हें कितना महत्व दिया, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो दो बार पार्टी के नेशनल प्रेसिडेंट रहे। अपोजिशन लीडर्स से भी उनके अच्छे रिलेशन माने जाते हैं।
मोदी कैबिनेट को देखें तो नायडू पांचवे नंबर पर आते हैं। मोदी के बाद राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के बाद उनका नंबर आता है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी वो मंत्री थे। उन्हें मोदी के सबसे करीबी मंत्रियों में से एक माना जाता है और छवि भी बेदाग रही है।
वेंकैया नायडू को मोदी के सबसे भरोसेमंद एडवाइजर्स में से एक माना जाता है। वाइस प्रेसिडेंट के तौर पर वो राज्यसभा के लिए तो फायदेमंद साबित होंगे लेकिन मोदी को उनकी सियासी तौर पर कमी महसूस हो सकती है।
68 साल के वेंकैया का जन्म 1 जुलाई, 1949 को नेल्लोर के चावतापालेम में हुआ था। वेंकैया का नाम सबसे पहले 1972 के जय आंध्र आंदोलन से सुर्खियों में आया था। 1974 में वे आंध्रा यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन के नेता चुने गए। इसके बाद वह आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन से जुड़े। आपातकाल के बाद ही उनका जुड़ाव जनता पार्टी से हो गया था। वे 1977 से 1980 तक जनता पार्टी की यूथ विंग के प्रेसिडेंट भी रहे। बाद में वे भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गए। 1978 से 85 तक वे दो बार विधायक भी रहे। 1980-85 के बीच वेंकैया आंध्र प्रदेश में बीजेपी पार्टी के नेता रहे। 1985-88 तक जनरल सेक्रेटरी रहे।
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