क्यों हिंदी की किताबों का ‘शुद्धिकरण’ करना चाहता है आरएसएस

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नई दिल्ली: देश की शिक्षा व्यवस्था के भगवाकरण को लेकर संघ पहले ही कई आरोपों से घिरा हुआ। ऐसे में अब आरएसएस के विचारक और एसएसयूएन के मुखिया दीनानाथ बत्रा एक बार विवादों भी घिर गए है। डीएनए की खबर के अनुसार Rss संघ से जुड़ी एक संस्था SSUN (शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास) कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक हिंदी की किताबों का शुद्धिकरण करना चाहती है।

एसएसयून का मानना है कि एनसीईआरटी की हिंदी की किताबों में उर्दू, फारसी, अंग्रेजी के शब्दों- जैसे ईमान, रुझान, ताकत, शिद्दत आदि का उपयोग भाषाई शुद्धता के लिहाज से ठीक नहीं है। इसके लिए संस्था ने सरकार को एक पत्र भी लिखा है जिसमें इन शब्दों को हटाने की बात कही गई है।

यही नहीं संगठन इन किताबों से मिर्जा गालिब और अन्य उर्दू शायरों की शायरी भी हटवाना चाहता है। संगठन ने अपने पत्र के साथ कुछ उदाहरण भी दिए हैं। मसलन हिंदी की एक किताब में बच्चों को गालिब का यह शेर पढ़ाया जा रहा है, ‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन, खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक’

दीनानाथ बत्रा ने बताया, ‘मैंने कक्षा एक से 12वीं तक पढ़ाई जा रही हिंदी की सभी किताबें पढ़ी हैं। मैंने पाया है कि उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों से हिंदी बेहद बोझिल हो गई है। बच्चों के लिए इसे पढ़ना चुनौती बना हुआ है। हिंदी पढ़ने में उनकी रुचि कम होती जा रही है। जबकि इसे उनके लिए मनोरंजन और सीखने-समझने का स्रोत बनना चाहिए। इसीलिए हमने मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के सामने मसला उठाया है। उनसे मांग की है कि दूसरी भाषाओं के शब्द इन किताबों से हटाए जाने चाहिए।’

हालांकि इस विषय में जब एनसीईआरटी से पूछा गया तो अधिकारियों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं। आपको बताते चले कि दीनानाथ बत्रा पहली बार विवादों में नहीं आए है इससे पहले भी  उन पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लग चुका है। उन्होंने कुछ समय पहले इतिहास की स्कूली पुस्तकों में बदलाव की मांग की थी। वे विदेशी भाषाओं पर प्रतिबंध की मांग करते रहे हैं। नई शिक्षा नीति बनाए जाने की प्रक्रिया में भी उन्होंने अंग्रेजी के बजाय हिंदी को शैक्षणिक निर्देशों की भाषा बनाने का सुझाव दिया है।

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