खुलासा: UP के इस चर्चित नेता ने रेप केस में बेल के लिए दी जज को 10 करोड़ की घूस

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति रेप मामले में जमानत पर हैं, अब इसको लेकर एक विवाद पैदा हो गया है। एक खुलासे के तहत ये कहा गया है कि प्रजापति को जमानत मिलना पहले से ही तय था, उन्हें जमानत दिलवाने में एक वरिष्ठ जज को 10 करोड़ की घूस दी गई थी।

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक रिपोर्ट से हवाले से बताया कि गायत्री प्रजापति को जमानत मिलने के पीछे 10 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक, रेप और हत्या जैसे मामलों की सुनवाई करने वाले जजों की पोस्टिंग में भ्रष्टाचार की बात आई है।

जस्टिस भोसले की रिपोर्ट के मुताबिक, सेशन जज ओ.पी. मिश्रा को रिटायर होने से 3 हफ्ते पहले ही प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस के जज के रूप में तैनात हुए थे और 25 अप्रैल को उन्होंने प्रजापति को जमानत दी थी। रिपोर्ट के अनुसार, ओ.पी. मिश्रा की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी हुई थी।

IB ने भी जज की गलत पोस्टिंग की बात को माना है, रिपोर्ट के मुताबिक गायत्री प्रजापति को 10 करोड़ रुपये के ऐवज में जमानत दी गई थी। जिसमें से 5 करोड़ रुपये उन तीन वकीलों को दिए गए जो मामले में बिचौलिए की भूमिका निभा रहे थे वहीं बाकी के 5 करोड़ रुपये पोक्सो जज (ओपी मिश्रा) और उनकी पोस्टिंग संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाली कोर्ट में करने वाले जिला जज राजेंद्र सिंह को दिए गए थे।

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आपको बता दें कि जिला जज राजेंद्र सिंह से पूछताछ की जा चुकी है। राजेंद्र सिंह को पदोन्नत कर हाई कोर्ट में तैनात किया जाना था लेकिन इस मामले के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने उनका नाम वापस ले लिया है और आगे की प्रक्रिया लंबित रखी गयी है।

अपनी गोपनीय रिपोर्ट में जस्टिस भोसले ने कहा है कि 18 जुलाई 2016 को पोक्सो जज के रूप में लक्ष्मी कांत राठौर की तैनाती की गयी थी और वह काफी अच्छा काम कर रहे थे। उन्हें अचानक से हटाने और उनके स्थान 7 अप्रैल 2017 को ओपी मिश्रा की पोस्को जज के रूप में तैनाती के पीछे कोई औचित्य या उपयुक्त कारण नहीं था। मिश्रा की तैनाती तब की गयी जब उनके रिटायर होने में मुश्किल से तीन सप्ताह का वक्त बचा था।

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यहां उल्लेख कर दें कि अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापित के खिलाफ बलात्कार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने 17 फरवरी को एफआईआर दर्ज किया था जिसके बाद उन्हें 15 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया था। 24 अप्रैल को उन्होंने जज ओपी मिश्रा की अदालत में जमानत की अर्जी दी और उन्हें मामले की जांच जारी रहने के बावजूद जमानत दे दी गयी थी।

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