साइंस का करिश्मा! इटली के वैज्ञानिकों ने प्रकाश को ‘फ्रीज’ कर दिखाया चमत्कार

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इटली के दो वैज्ञानिकों, एंटोनियो जियानफाटे (CNR Nanotec) और डेविडे निग्रो (University of Pavia), ने एक अद्भुत खोज की है, जिसमें उन्होंने प्रकाश को ‘फ्रीज’ करके यह दिखाया कि यह एक सुपरसॉलिड की तरह व्यवहार करता है। यह खोज विज्ञान जगत के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है और वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ सुपरसॉलिडिटी को समझने की शुरुआत है।

क्या है सुपरसॉलिड?
सुपरसॉलिड एक ऐसा पदार्थ का रूप (State of Matter) है, जो ठोस की तरह संरचना रखता है लेकिन एक सुपरफ्लुइड (Superfluid) की तरह बिना घर्षण के प्रवाहित हो सकता है। हालांकि, इसे बनने के लिए बेहद विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।

अब तक सुपरसॉलिड्स को केवल बोस-आइंस्टीन कंडेन्सेट्स (Bose-Einstein Condensates) में देखा गया था, जो पदार्थ की वह अवस्था होती है जिसमें बोसॉन्स (Bosons), जैसे कि परमाणु, एक ही क्वांटम अवस्था में संघनित हो जाते हैं। इसके लिए परमाणुओं को लगभग शून्य केल्विन (Absolute Zero) तक ठंडा करना पड़ता है।

कैसे किया प्रयोग?
वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या इन सुपरसॉलिड कंडीशंस को फोटोनिक सेमीकंडक्टर प्लेटफॉर्म में दोहराया जा सकता है। इसमें फोटॉनों को इलेक्ट्रॉनों की तरह नियंत्रित किया जाता है, जिससे वे भी सुपरसॉलिड की तरह व्यवहार करने लगते हैं। हमारे WhatsApp चैनल से जुड़ें

समझें यह प्रक्रिया?

वैज्ञानिकों ने इसे एक भीड़ भरे थिएटर से तुलना करके समझाया।

  • सोचिए कि किसी थिएटर में सिर्फ तीन सीटें खाली हैं – एक बीच में और दो दोनों सिरों पर।
  • सबसे अच्छी दृश्यता बीच वाली सीट पर होती है, इसलिए हर कोई वहीं बैठना चाहता है, लेकिन सामान्य दुनिया में एक ही व्यक्ति उस पर बैठ सकता है।
  • मगर क्वांटम थिअटर में, जहां बोसॉन्स होते हैं, सब एक साथ उसी सीट पर बैठ सकते हैं।
  • इस प्रक्रिया को बोस-आइंस्टीन कंडेन्सेट कहा जाता है, जिसमें कण एक साथ सबसे कम ऊर्जा वाली अवस्था में आ जाते हैं और सुपरफ्लुइड जैसे व्यवहार करने लगते हैं।

वैज्ञानिकों का क्या कहना है?
इस अध्ययन के बारे में शोधकर्ताओं का कहना है: “यह सुपरसॉलिडिटी को समझने की शुरुआत मात्र है। जैसे-जैसे हम इसे और समझेंगे, हमें भौतिकी की नई संभावनाओं के बारे में भी जानकारी मिलेगी।” हमारे WhatsApp चैनल से जुड़ें

इस खोज का क्या महत्व है?
यह खोज प्रकाश और पदार्थ के क्वांटम व्यवहार को समझने में एक नई दिशा प्रदान कर सकती है। यह न केवल क्वांटम कंप्यूटिंग और अत्याधुनिक तकनीकों के विकास में मदद करेगी, बल्कि फिजिक्स की बुनियादी समझ को भी और मजबूत करेगी। हमारे WhatsApp चैनल से जुड़ें

यह खोज 1960 में पहली बार अनुमानित की गई थी, लेकिन 2017 में MIT और ETH ज़्यूरिख के शोधकर्ताओं ने इसे सिद्ध किया था। अब, इस नए अध्ययन से सुपरसॉलिड की अवधारणा को और स्पष्टता मिल सकती है।

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